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जन प्रतिमाविज्ञान
बालकों के रुदन का कारण और रोकने का उपाय श्रादि सीखा गया । दसवें कुलकर के समय तक 'हा' के अलावा 'मा' दण्ड भी चल चुका था ।
ग्यारहवें कुलकर के समय में शीत तुषार वायु चलने लगी थी । बारहवें कुलकर के समय तक बिजली चमकने लगी, मेघ गरजने लगे । उस समय मनुष्य ने नौका और छत्र का उपयोग सीखा । तेरहवें कुलकर के समय में बालक तिपटल ( जरायु) से वेष्टित जन्मने लगे । चौदहवें कुलकर नाभि थे । उनके समय में बालकों का नाभिनाल लम्बा होने लगा था । उन्होंने उसे काटने का उपदेश दिया । नाभि अन्तिम कुलकर थे । उन्होंने ही लोगों को धान्य खाने और आजीविका के तरीके सिखाये । नाभि की पत्नी का नाम मरुदेवी था । प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ इन्ही के पुत्र थे ।
त्रिषष्टि शलाका पुरुष
चौबीस तीर्थंकर, द्वादश चक्रवर्ती, नव बलराम, नव नारायण, और नव प्रतिनारायण, इन त्रेसठ विशिष्ट पुरुषों की गणना शलाका पुरुषों में की जाती है । इन शलाकापुरुषों ने अपने विशिष्ट कार्यों द्वारा महत्त्व का स्थान प्राप्त किया था ।
तीर्थकरों के संबंध में हम भागे विवरण देंगे । वर्तमान अवसर्पिर्णी के चतुर्थकाल में हुये बारह चक्रवर्ती ये हैं- भरत, सगर, मधवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभीम, पद्म, हरिषेण, जयसेन श्रौर ब्रह्मदत्त । चक्रवर्ती पटखण्ड भरतक्षेत्र के अधिपति होते है । उन्हें चौदह रत्न और नवनिधि का लाभ होता है । सेनापति, गृहपति, पुरोहित, गज, तुरंग, वर्धकि, स्त्री, चक्र, छत्र, चर्म, मणि, काकिनी, खड्ग और दण्ड ये चतुर्दश रत्न बताये गये हैं । काल, महाकाल पाण्डु, माणवक, शंख, पद्म, नैसर्प, पिंगल और नानारत्न ये नव निधि है ।" प्रथम चक्रवर्ती भरत आदि तीर्थकर ऋषभदेव के पुत्र थे । उनका अपने भ्राता बाहुबली से युद्ध हुआ था जिसमें बाहुबली विजयी हुये पर इस घटना से उन्हें
१. प्रागे आने वाले उत्सर्पिर्णी काल में जो कुलकर होंगे उनके नाम तिलोय पण्णत्ती ४ / १५७०-७१ में दिये गये हैं ।
२. तिलोयपण्णत्ती, ४५१५-१६
३. वही ४।७३६