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तालमान
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और पुष्पवृष्टि इन पाठ प्रातिहार्यों की योजना किये जाने का उल्लेख किया है। प्रातिहार्य योजना का निर्देश अपराजितपुच्छा' और रूपमण्डन' में भी मिलता है । रूपमण्डन के अनुसार जिन की प्रतिमाएं छत्रत्रय और त्रिरथिका से युक्त होती हैं । वे अशोक द्रुमपत्र दुन्दुभिवादक देवों, सिंहासन, असुरादि, गज, सिंह से विभूषित होती हैं । मध्य में कर्मचक्र (धर्मचक्र) होता है और दोनों पावों में यक्ष-यक्षिणी । परिकर का बाह्य विस्तार दो ताल और दीर्घता मूल प्रतिमा के बराबर बनाना चाहिये । इनके ऊपर तोरण होना चाहिये । बाह्य पक्षमें गोसिंहादि से अलंकृत वाहिकाएं मौर द्वारशाखा से युक्त प्रतिमा बनानी चाहिये तथा उसमें विभिन्न देवताओं की मूर्तियां बनी होना चाहिये । रथिकाओं के नाम रूपमण्डनकार ने ललित, चेतिकाकार, त्रिरथ, बलितोदर, श्रीपुञ्ज, पञ्चरथिक और आनन्दवर्धन ये सात दिये हैं । रूपमण्डन के अनुसार रथिका में ब्रह्मा, विष्णु, ईश, चण्डिका, जिन, गौरी, गणेश, अपने-अपने स्थान पर होते हैं।'
सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ सदा ममात्मा विदधातु देव ।।
१. २२१/५७ २. ६/२७ ३. रूपमण्डन, ६/३३-३६