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________________ जैन प्रतिमाविज्ञान के मध्य में घण्टा), २ भाग स्तंभिका, ६ भाग मकरमुख, इस प्रकार एक ओर ४२ भाग होने से दोनों तरफ का छत्रवटा ८४ भाग होता है।' छत्र २४ भाग होता है। तदुपरि छत्रत्रय का उदय १२ भाग, तदुपरि शंखधारी ८ भाग, तदुपरि वंशपत्रादि ६ भाग । इस प्रकार छत्रवटा का उदय ५० भाग का होता है। छत्रत्रय का विस्तार २० अंगुल, निर्गम दस भाग, भामण्डल का विस्तार २२ भाग और प्रसार ८ भाग।' दोनों प्रोर के मालाधारी १६--१६ भाग के, तदुपरि हाथी १८--१८ भाग के । ___हाथी पर हरिनगमेष, उनके सम्मुख दुन्दुभिवादक और मध्य में छत्रोपरि शंख फूकने वाला होता है।' परिकर के पखवाड़े में दोनों चामरधारियों और वंशी--वीणाधारियों के स्थान पर कायोत्सर्ग जिन प्रतिमाएं स्थितकर परिकर मे पंचतीर्थो की योजना की जा सकती है।" प्राचार दिनकर में सिंहासन और परिकर का स्वरूप इस प्रकार बताया गया है । जिन बिम्ब के सिंहासन पर गज, सिंह, कीचक का अंकन, दोनों पार्श्व में चामरधारी और उनके बाह्य की ओर अञ्जलिधारी । मस्तक के ऊपर छत्रत्रय, छत्रत्रय के दोनों ओर सूड में स्वर्णकलश लिये श्वेतगज, तदुपरि झांझ बजाते पुरुष, तदुपरि मालाधारी, शिखर पर शंख फूंकने वाला और तदुपरि कलश ।' प्राचार दिनकर कार ने सिंहासन के मध्य भाग में दो हरिणों के बीच धर्मचक्र और धर्मचक्र के दोनों ओर ग्रहों की प्रतिमाएं बनाने का भी मत प्रकट किया है।' नेमिचन्द्र, वसुनन्दि तथा अन्य दिगम्बर लेखकों ने भी जिनप्रतिमा के साथ सिंहासन, दिव्यध्वनि, चामरेन्द्र, भामण्डल, अशोकवृक्ष, छत्रत्रय, दुदुभि १. वास्तुसार प्रकरण, २/३२--३३ २. वही, ३/३४ ३. वही, २/३५ ४. वही, २०३६ ५. वही, २०३८ ६. प्राचार दिनकर, उदय ३३ ७. वही, उदय ३३ ८. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५१७४-७५; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ५७६--५८१
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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