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________________ तालमान एड़ी से मध्य प्रांगुली तक एडी से अंगूठे क एड़ी से कनिष्ठिका तक चरण की दीर्घता चरण का विस्तार चरण का उदय दायें मोर यक्ष बाये और यक्षी सिह गज जिनप्रतिमा के सिहासन और परिकर के मान का भी ठक्कर फेरु ने विवरण दिया है | प्रतिमा की अपेक्षा सिंहासन दीर्घता मे डेवढ़ा, विस्तार में आधा और मोटाई मे चतुर्थाश होना चाहिये । उस पर गज, सिह आदि नौ या सात रूपक होते है । सिंहासन के दोनो श्रोर यक्ष-यक्षिणी, एक-एक सिह, एक-एक गज, एक-एक चामरधारी और उनके बीच मे चत्रधारिणी चक्रेश्वरी देवी बनाने का विधान है । इनका मान इस प्रकार है : ------ चामरधारी चक्रेश्वरी १५ अंगल १६ अंगुल १४ अंगुल १६ अंगुल अंगुल ४ अंगुल १. वास्तुसारप्रकरण, २ /२७ २. वही, ३. वही, २/ २८ २/ ३० २५ १४ भाग १४ भाग १२-१२ भाग १०-१० भाग ३-३ भाग ६ भाग तदनुसार सिहासन की कुल लम्बाई ८४ भाग धर्मचक्र, और उसके दोनो मोर एक-एक हरिण तथा चिह्न बनाया जाता है ।" परिकर के पखवाड़े का उदय कुल ५१ भाग होता है ।" उसमे आठ भाग चामरधारी का पादपीठ, ३१ भाग चामरधारी और तदुपरि १२ भाग तोरण के शिर तक । चामरधारी देवेन्द्रो की दृष्टि मूलनायक प्रतिमा के स्तनमूत्र के बराबर होती है । परिकर के छत्रवटा मे, १० भाग अर्धछत्र, १ भाग कमलनाल, १३ भाग मालाधारी, २ भाग स्तंभिका ८ भाग दुदुभिवादक, (तिलक चक्रेश्वरी देवी के नीचे मध्यभागमे तीर्थंकर का
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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