________________
तालमान
जिसका उपयोग प्राचीन प्रतिमा निर्माण में किया जाता था। वह मान है प्रतिमा का मुख ।
वसुनन्दि ने ताल, मुख, वितस्ति और द्वादशांगुल को समानार्थी बताया है और उस मान से बिम्ब निर्माण का विधान किया है। प्रतिमा के मुख को एक भाग मानकर सम्पूर्ण प्रतिमा के नौ भाग किये जाने चाहिये । तदनुसार वह प्रतिमा नौ ताल या १०८ अंगुल की होगी। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि नवताल प्रतिमा का नवा भाग एकताल और उसका १०८ वां भाग एक अंगुल कहलावेगा।
वमुनन्दि ने नवताल मे बनी ऊर्ध्व (कायोत्सर्ग आसन) जिन प्रतिमा का मान इस प्रकार बताया है :मुख
१ ताल (१२ अगुल) ग्रीवाध.भाग
४ अंगुल कण्ठ से हृदय तक १२ अंगुल हृदय स नाभि तक १ ताल (१२ अंगुल) नाभि से मेढ़ तक १ मुख (१२ अंगुल) मेढ़ से जानु तक १ हस्त (२४ अंगुल) जानु
४ अंगुल जानु से गुल्फ नक १ हस्त (२४ अंगुल) गुल्फ से पादतल तक ४ अंगुल
योग १०८ अंगुल-६ ताल'
प्रतिष्ठागारमग्रह (वसुनन्दि) ने प्रतिमा के अंग-उपॉगो के मान का विस्तार से विवरण दिया है ।' द्वादशागुल विस्तीर्ण और अायत केशान्त मुख के तीन भाग करन पर ललाट, नामिका और मुख (वचन) प्रत्येक भाग ४-४ अंगुल का होता है । नासिकारंध्र ८: यव प्रौर नासिकापाली ४ यव होना चाहिये। ललाट का नियंक अायाम आठ अ गुल बताया गया है । उसका प्राकार प्रचन्द्र के समान होता है । पाच अंगुल पायत केशस्थान मे उष्णीष दो अंगल
१. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ४-५ २. रूपमण्डन की नवताल प्रतिमा का भी यही मान है। ३. परिच्छेद ४