SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रध्याय तालमान जैन और जैनेतर शिल्पग्रन्थों में जिन प्रतिमा के मानादिक का विवरण मिलता है । रूपमण्डन जैसे कुछ ग्रन्थों में जिन प्रतिमा का ऊर्ध्वमान दशताल कहा गया है किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि नवताल जिनप्रतिमा के निर्माण विधान की मान्यता प्रायः प्रचलित रही है और शिल्पकारों ने अधिकतर उसी का अनुसरण किया है । परमाणु तालमान की सबसे छोटी इकाई है । वह अत्यन्त सूक्ष्म स्वरूपी है । तिलोयपण्णत्ती में बताया गया है कि परमाणुत्रों के अनंतानंत बहुविध द्रव्य से एक उपसन्नासन्न स्कंध बनता है और आठ उपसन्नासन्न स्कंधों के बराबर एक सन्नासन्न स्कंध होता है । सन्नासन्न स्कंध से ऊंची इकाईयों को तिलोयपण्णत्तीकार इस प्रकार बताते है । : -- ८ सन्नासन्न स्कंध = १ त्रुटिरेण त्रुटिरेणु = १ त्रसरेण् ८ त्रसरेणु = १ रथरेणु ८ रथरेण = १ उत्तम भोगभूमि का बालाग्र ८ उत्तम भोगभूमि बालाग्र = १ मध्यम भोगभूमि का बालाग्र ८ मध्यम भोगभूमि वालाग्र = १ जघन्य भोगभूमिका बालाग्र ८ जघन्य भोगभूमि बालाग्र = १ कर्मभूमि का बालाग्र ८ कर्मभूमि बालाग्र = १ लिक्षा लिक्षा = १ जू ८ जूं = १ यव ८ यव = १ अंगुल १. १ / १०२-१०३ २. १/१०४ - १०६
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy