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________________ १८ जन प्रतिमाविज्ञान प्रत्येक तीर्थकर प्रतिमा अपने लांछन से पहचानी जाती है । वह लांछन प्रतिमा के पादपीठ पर अंकित किया होता है। किन्तु, कुछ तीर्थकरों की प्रतिमामों में उनके विशिष्ट लक्षण भी दिखाये जाते हैं, जैसे प्रादि जिनेन्द्र की प्रतिमा जटाशेखर युक्त होती है, सुपार्श्वनाथ के मस्तक पर सर्प के पांच फणों का छत्र' और पार्श्वनाथ के मस्तक पर सातफणों वाले नाग का छत्र होता है ।' बलराम और वासुदेव सहित नेमिनाथ की प्रतिमा मथुरा में प्राप्त हुयी है। प्राचार्यो और माधुनों की प्रतिमाएं पिच्छिका, कमण्डलु या पुस्तक के सद्भाव के कारण पहचान ली जाती हैं। १. अति प्राचीन प्रतिमाओं में लांछन नहीं होते थे । मथुरा की कुषाण कालीन जिन प्रतिमानों में लांछन नही हैं । २. तिलोयपण्णत्ती, ४/२३० ३. पद्मानंदमहाकाव्य, १/१० ४. वही, १/२६
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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