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मंदिर भोर प्रतिमाएँ
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हीनप्रमाण हो तो प्राचार्य का नाश होता है। हीनअँधा प्रतिमा से पुत्र और बंधु की मृत्यु हो जाती है । प्रतिमा का प्रासन हीनप्रमाण होने से ऋद्धियों नष्ट होती हैं । हाथ-पैर हीन होने से धन का क्षय होता है । प्रतिमा की गर्दन उठी हुयी हो तो धन का विनाश, वत्रग्रीवा से देश का विनाश और अधोमुखसे चिन्ताग्रो की वृद्धि होती है। ऊँच-नीच मुखवाली प्रतिमासे विदेशगमन का कष्ट होता है । अन्यायोपात्त धन से निर्मित करायी गयी प्रतिमा दुभिक्ष फैलाती है। रौद्र प्रतिमासे निर्माण करानेवाले की और अधिकाग प्रतिमा मे शिल्पी की मृत्यु होती है । दुर्बल अंगवाली प्रतिमासे द्रव्य का नाश होता है । तिरछी दृष्टि वाली प्रतिमा प्रपूज्य है । प्रति गाढ दृष्टि युक्त प्रतिमा अशुभ एव अधोदृष्टि प्रतिमा विघ्नकारक होती है।' वसुनन्दि न जिनप्रतिमामे नामाग्रनिहित, शान्त, प्रसन्न एव मध्यस्थ दृष्टि को उत्तम बताया है । वीतराग की दृष्टि न तो अत्यन्त उन्मीलित हो और न विस्फुरित हो। दृष्टि तिरछी, ऊँची या नीची न हो इमका विशेष ध्यान रखे जाने का विधान है। वास्तसारप्रकरण के ममान वमुनन्दि ने भी अपने प्रतिष्ठासारसग्रह मे सदोष प्रतिमा के निर्माण से होने वाली हानियो का विवरण दिया है ।' प्राशाधर एडित और वर्धमानसूरि ने भी अनिष्टकारी, विकृतॉग और जर्जर प्रतिमानो की पूजा का निषेध किया है।' यद्यपि महाभारत के भीष्म पर्व, बृहत्म हिता, रूपमण्डन आदि ग्रन्थो मे उल्लेख मिलता है कि प्रतिमा के निर्माण, प्रतिष्ठा और पूजन मे यथेष्ट विधि के अपालन के कारण प्रतिमा में विभिन्न विकृतिया उत्पन्न हो जाती है। किन्तु वीतराग भगवान् की प्रतिमामे विकृति उत्पन्न होने का कोई उल्खेख किसी भी जैन ग्रन्थमे नही मिलता। भग्न प्रतिमाएँ
भग्न प्रतिमामा की पूजा नहीं की जाती। उन्हे सम्मान के साथ विसजित कर दिया जाता है । मूलनायक प्रतिमा के मुग्व, नाक, नेन, नाभि और कटि क भग्न हो जाने पर वह त्याज्य होती है । जिनप्रतिमा के विभिन्न प्रग
१. वास्तुमार प्रकरण, २/४६-५१ २. प्रतिष्ठामारसंग्रह, ४/७३-७४. ३. वही, ४/७५-८० ४. प्रतिष्ठासारोद्धार, १/८३; प्राचार दिनकर, उदम ३३ ५. वास्तुसारप्रकरण, २/४०