SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन प्रतिमाविज्ञान ८४ गृह पूज्य प्रतिमाएं निवास गृह में पुज्य प्रतिमानों की अधिकतम ऊँचाई के विषयमें जैन ग्रन्थकारों में किञ्चित् मतभेद दिखायी पड़ता है। दिगम्बर शाखा के वसुनन्दि ने द्वादश अंगुल तक ऊंची प्रतिमा को घर में पूजनीय बताया है।' किन्तु ठक्कर फेरु ग्यारह अंगृल तक ऊँची प्रतिमा को ही गृह पूज्य कहते हैं । इस का मुख्य कारण यह है कि ठक्कर फेरु ने सम अंगुल प्रमाण प्रतिमाओं को अशुभ माना है । प्राचारदिनकरकार भी विषम अंगुल प्रमाण की ही प्रतिमाएँ निर्मित किये जाने का विधान और सम अंगुल प्रमाण की प्रतिमाएँ निर्मित करनेका निषेध करते हैं ।३ ठक्कर फेरु ने सिद्धों की केवल धातुनिर्मित प्रतिमानों को ही गृह पूज्य बताया है । सकलचन्द्र उपाध्याय जैसे ग्रन्थकारों ने बालब्रह्मचारी तीथंकरों की प्रतिमानों को भी गृहपूज्य नहीं कहा है क्योंकि उन प्रतिमाओं के हर क्षण दर्शन करते रहने से परिवार के सभी लोगों को वैराग्य हो जाने की प्राशंका हो सकती है । मलिन, खण्डित, अधिक या हीन प्रमाण वाली प्रतिमाएँ भी गृह में पूज्य नहीं है। अपूज्य प्रतिमाएँ रूपमण्डनकार ने हीनाँग और अधिकांग प्रतिमाओं के निर्माण का सर्वथा निषेध किया है। शुक्रनीति में हीनांग प्रतिमा को, निर्माण कराने वाले को और अधिकांग प्रतिमा को शिल्पी की मृत्यु का कारण बताया है । जैन परम्परा के ग्रन्थों में भी वक्रांग, हीनांग और अधिकॉग प्रतिमा निर्माण को भारी दोष माना गया है । वास्तुसार प्रकरण में सदोष प्रतिमा के कुफल का विस्तार से वर्णन है । टेढ़ी नाकवाली प्रतिमा बहुत दुखदायी होती है । प्रतिमा के अंग छोटे हों तो वह क्षयकारी होती है । कुनयन प्रतिमा में नेत्रनाश और अल्पमुखवाली प्रतिमा के निर्माण से भोगहानि होती है । यदि प्रतिमा की कटि १. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५/७७ २. वास्तुसारप्रकरण, २/४३ ३. प्राचार दिनकर, उदय ३३ । ४. रूपमण्डन १/१४. ५. शुक्रनीति, ४/५०६
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy