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________________ मंदिर और प्रतिमाएँ जबकि कुछ ने ऐसे बिम्बों की प्रतिष्ठाविधि का वर्णन किया है । भट्टाकलंक ने मिट्टी, काष्ठ और लौह से निर्मित प्रतिमाओं को प्रतिष्ठेय बताया है।' वर्धमानसूरि ने काप्ठमय, दन्तमय और लेप्यमय प्रतिमानो की प्रतिष्ठाविधि का वर्णन किया है किन्तु कामे, शीसे और कलई की प्रतिमानो के निर्माण का निषेध किया है । जयसेन आदि प्राचार्यों ने मिट्टी, काप्ठ और लेप से बनी प्रतिमाओं को पूज्य नही बताया है ।' यद्यपि जीवन्तस्वामी की चन्दनकाष्ठ की प्रतिमा निर्मित किये जाने का प्राचीन ग्रन्थो में उल्लेख मिलता है पर ऐसा प्रतीत होता है कि काष्ठ जैसे भंगुर द्रव्यों से जिनप्रतिमाएं निर्मित किये जाने की विचारधारा को जैन परम्परा में कभी स्थायी मान्यता प्राप्त नही हो सकी। पाषाण की प्रतिमाएं निर्मित किया जाना सर्वाधिक मान्यताप्राप्त एवं व्यावहारिक रहा । प्रतिमा निर्माण के लिये शिला के अन्वेषण और उसके गुण दोषों के विचार के विषय में भी प्राचीन ग्रन्थो मे विवेचन मिलता है । प्राशाधर ने लिखा है कि जब जिन मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो जावे अथवा पूरा होने को हो तो प्रतिमा के लिये शिला का अन्वेषण करने शुभ लग्न और शकुन में इप्ट शिल्पी के साथ जाना चाहिये । वसुनन्दि ने श्वेत, रक्त, श्याम, मिश्र, पारावत, मुद्ग, कपोत, पद्म, मोजिष्ठ, और हरित वर्ग की शिला को प्रतिमा निर्माण के लिये उत्तम बताया है। वह शिला कठिन, शीतल, स्निग्ध, सुम्वाद सुस्वर, दृढ़, सुगंधयुक्त, तेजस्विनी पीर मनोज्ञ होना चाहिये । बिन्दु और रेखानों वाली गिला प्रतिमा निर्माण कार्य के लिये वज्यं कही गयी है। उसी प्रकार, मृदु, विवर्ण, दुर्गन्धयुक्त, लघु, रूक्ष, घूमल और निशब्द शिलाएं भी प्रयोग्य ठहरायी गयी है।' १. तद्याग्य : मगुगद्रव्य निर्षिः प्रौढशिल्पिना । ___ रत्नपापाणमृद्दामलौहाद्यैः साधुनिमितम् ।। २, आचार दिनकर, उदय ३३ । ३. प्रतिष्ठापाठ, १८३ । ४. उमाकात परमानन्द गाह : स्टडीज इन जैन प्रार्ट, पष्ठ ४ । ५. प्रतिष्ठासारोद्धार, १।४६ । ६. प्रतिष्ठासारसं ह, ३१७७ । ७. वही, ३१७८ । प्रतिष्ठामारोद्धार ,११५०,५१ । ८. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ३१७६ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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