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जन प्रतिमाविज्ञान
ब्रह्ममूरि और पार्श्वनाथ । उनके ज्येष्ठ भ्राता आदिनाथ के त्रैलोक्यनाथ, जिनचंद्र आदि, स्वयं नेमिचन्द्र के कल्याणनाथ और धर्मशेवर तथा कनिष्ठ भ्राता विजय के समन्तभद्र नामक पुत्र हो ।
प्रतिष्ठानिलक की प्रशस्ति में नमिचन्द्र ने विजयकीर्ति नामक प्राचार्य का स्मरण किया है, पर किम प्रसंग में, यह वहां स्पष्ट नही है । अभयचन्द्र नामक महोपाध्याय से नेमिचन्द्र ने तर्क, व्याकरण और आगम आदि की शिक्षा प्राप्त की थी एवं सत्यगासनपरीक्षाप्रकरण तथा अन्य ग्रन्थों की रचना की थी । प्रतिष्ठातिलक की प्रशस्ति में बताया गया है कि नेमिचन्द्र को राजा से पालकी, छत्र प्रादि वैभव प्राप्त हय थे। उमी प्रगस्ति मे ज्ञात होता है कि उनका परिवार ममद्ध था । नेमिचन्द्र ने जैन मंदिर, मंडप, वीथिका आदि का निर्माण कराया था एवं पार्श्वनाथ मंदिर मे गीत, वाद्य, नृत्य आदि का प्रबंध किया था। नेमिचन्द्र स्थिर कदम्ब नगर में निवास करते थे। पुत्रों और बंधुनों की प्रार्थना पर उन्होने प्रनिष्ठातिलक की रचना की थी।
हस्तिमल्ल के प्रतिष्ठापाठ का उल्लेव अय्यपार्य ने किया है। किन्तु उस ग्रन्थ की प्रमाणित प्रति अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। आरा के जैन सिद्धान्त भवन मे मुक्षित प्रतिष्ठापाठ नामक हस्तलिखित ग्रन्थ के कर्ता संभवत. हम्तिमल्ल हो सकते है ? अय्यपार्य का प्रतिष्ठाग्रन्थ जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय के नाम से ज्ञात है । वे हस्तिमल्ल के अन्वय में हुये थे और उनका गोत्र काश्यप था । अय्यप के पिता का नाम करुणाकर और माता का नाम अर्कमाम्बा था । करणाकर गुणवीरमूरि के गिप्य पुष्पसेन के शिष्य थे। अय्यप के गुरु धरसेन प्राचार्य थे । अय्यप के जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय में ३५६० श्लोक हैं। वह रुद्रकुमार के राज्य मे एकरिगलानगरी मे शक संवत् १२४१ में माघ सुदि १० रविवार को मम्पर्ण हुप्रा था ।' अय्यपायं ने स्वयं सूचित किया है कि उन्होंने वीगचार्य, पूज्यपाद, जिनसेन, गुणभद्र, वसुनन्दि, इन्द्रनन्दि, आशाधर और हस्तिमल्ल के ग्रन्थो से सार लेकर पुष्पमेन गुरु के उपदेश से ग्रन्थ की रचना की है।
वादि कुमुदचन्द्र के प्रतिष्ठाकल्पटिप्पण या जिनसंहिता की प्रतियां कई स्थानो में उपलब्ध है। मद्रास अोरियण्टल लाइब्रेरी में सुरक्षित प्रति
१. जैन ग्रन्थप्रगस्तिमंग्रह, प्रथम भाग, पृष्ठ ११२, दौर्बलि शास्त्री
श्रवणबेल्गुल की प्रति से उद्धृत अंश ।