________________
माधार प्रन्य
प्रतिष्ठासारसंग्रह के रचयिता वसुनन्दि के श्रावकाचार का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। वे प्राशाधर पंडित और अय्यपार्य से पूर्ववर्ती थे क्योकि इन दोनों ने ही अपने अपने ग्रन्थों मे वसुनन्दि के मत का उल्लेख किया है । प्रतिष्ठासारसंग्रह की रचना के लिये वसुनन्दि ने चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति के साथ महापुराण से भी सार ग्रहण किया था। आशाधर पंडित के प्रतिष्ठासारोद्धार की रचना विक्रम संवत् १२८५ में आश्विन पूर्णिमा को परमार नरेश देवपाल के राज्यकाल में नलकच्छपुर के नेमिनाथ चैत्यालय में सम्पूर्ण हुयी थी। ग्रन्थ की प्रशस्ति में' उल्लेख किया गया है कि प्राचीन जिनप्रतिष्ठाग्रन्थों का भलीभाँति अध्ययन कर और ऐन्द्र (संभवतः इन्द्रनन्दि के) व्यवहार का अवलोकन कर पाम्नाय-विच्छेदरूपी तम को छेदने के लिये युगानुरूप ग्रन्थ की रचना की गयी। प्राशाधर जी ने वसुनन्दि के पक्षधर विद्वानों के विपरीत मन का भी उल्लेख किया है। आशाधर के प्रतिष्ठासारोद्धार का प्रचार केल्हण नामक प्रतिष्ठाचार्य ने अनेक प्रतिष्ठानो में पढ़कर किया था ।
नेमिचन्द्र का प्रतिष्ठातिलक भी बहप्रचारित ग्रन्थ है । उसमे इन्द्रनन्दि की रचना का उल्लेख है । नेमिचन्द्र जन्मना ब्राह्मण थे । प्रतिष्ठातिलक की पुष्पिका में उन्होने लिखा है कि भरत चक्रवर्ती द्वारा निर्मित ब्राह्मण वंश में से कुछ विवेकियो ने जैन धर्म को नही छोड़ा। उस वंश में भट्टारक अकलंक, इन्द्रनन्दि मुनि, अनंतवीर्य, वीरसेन, जिनसेन, वादीसिह, वादिराज, हस्तिमल्ल (गृहाश्रमी), परवादिमल्ल मुनि हुये । उन्ही के अन्वय में लाकपाल नामक विद्वान द्विज हुअा जो गृहस्थाचार्य था। चोल राजा उसकी पूजा करते थे। लोकपाल राजा के साथ कर्णाटक मे प्रतिदेश पहुंचा । वहा उसकी वश परम्परा में समयनाथ, कवि राजमल्ल, चिंतामणि, अनंतवीयं, संगीतज्ञ पायनाथ, आयुवेदज्ञ पार्श्वनाथ और षट्कर्मज्ञाता ब्रह्मदेव हुये । ब्रह्मदेव का पुत्र देवेन्द्र संहिता शास्त्र का ज्ञाता था । उसके आदिनाथ, नेमिचन्द्र और विजयप ये पुत्र थे । इन्ही नेमिचन्द्र के द्वारा प्रतिष्ठातिलक की रचना की गयी ।
नेमिचन्द्र की माता का नाम आदिदेविका बताया गया है । नाना विजयपार्य थे और नानी का नाम श्रीमती था । नेमिचन्द्र के तीन मामा थे, चंदपार्य,
१. श्लोक १८-२१ २. प्रतिष्ठासारोद्धार, १,१७५