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________________ भाधार प्रन्थ प्रतिमा निर्मित की गई थी। हाथी गुंफा प्रशस्ति में नन्दराज द्वारा कलिग की जिन प्रतिमा मगध ले जाये जाने का उल्लेख है। कुछ विद्वान हडप्पा की कबन्ध प्रतिमा को जैन प्रतिमाओं का प्राद्यरूप स्वीकार करते हैं । लोहिनीपुर से प्राप्त और वर्तमान में पटना संग्रहालय में प्रदर्शित जिन प्रतिमाएँ तथा खंडगिरि (उड़ीसा) और मथुरा में उपलब्ध विपुल शिल्प, प्रतिमाएँ और अायागपट्ट आदि, जैन प्रतिमा निर्माण के प्राचीनतर नमूने हैं। कंकाली टीले से प्राप्त कलाकृतियों में विभिन्न जिन प्रतिमानों के अतिरिक्त स्तूप, चैत्यवृक्ष, ध्वजस्तंभ, धर्मचक्र, और अष्टमंगलद्रव्य प्रादि का भी रूपांकन मिला है । देवी सरस्वती और नैगमेष की प्राचीन प्रतिमाएँ भी मथुरा में प्राप्त हुई है । प्रिन्स आफ वेल्स संग्रहालय की पाश्र्वनाथ प्रतिमा लगभग इक्कीस सौ वर्ष प्राचीन अाँकी गई है । उपलब्ध जैन आगमों के पूर्ववर्ती विद्यानुवाद नामक दसर्व और क्रियाविशाल नामक तेरहवें पूर्व में शिल्प और प्रतिष्ठा संबंधी विवेचन का होना बताया जाता है पर वे ग्रन्थ विच्छिन्न हो गये है। सूत्रकृतोग, समवायांग कल्पसूत्र आदि में जैन प्रतिमाओं के संबंध में कुछ प्राद्य-सूचनाएं मिलती है। समवायांग में ५४ महापुरुषों के विवरण हैं । पिछली परम्परा में इन महापुरुषों या शलाकापुरुषों की संख्या ६३ मानी गयी है किंतु समवायाग की सूची में ६ प्रतिनारायणो की गणना नहीं किये जाने के कारण उनकी संख्या ५४ ही है। शलाकापुरुषो में सर्वाधिक श्रेष्ठ और पूजनीय २४ तीर्थकरों को माना गया है । तीर्थकर जैन प्रतिमा विधान के मुख्य विषय है । मध्यकालीन जैन साहित्य में तीर्थकरों के चरितग्रंथो मे उनके शासन से संबंधित देवताओं के रूपों का भी वर्णन मिलता है। हेमचंद्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, शीलांकाचार्य का प्राकृत भाषा मे रचित चउपन्नमहापुरिमरिन, पुप्पदन्त का अपभ्रंश भाषा का तिट्टिमहा पुरिसालंकार, ग्रागाधर का संस्कृत भाषा में त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र और चामुण्डराय का कन्नड भाषा का त्रिपष्टिलक्षण महापुराण, ये सभी सुप्रसिद्ध चरितग्रंथ है । वर्द्धमानमूरि के ग्रादिणाहचरिउ, विमलमूरि के पउमरिउ, रविषंणाचार्य के पद्मचरित, जिनमेनाचार्य के हरिवंशपुराण और महापुराण, अमरचन्द्र सूरि कृत पद्मानंद महाकाव्य या चतुविंशति जिनेन्द्रचरित, गुणविजय मूरि कृत नेमिनाथ चरित्र, भवदेवसूरि कृत पार्श्वनाथ चरित्र तथा अन्य पुराणों और चरित्रकाव्यों में विभिन्न तीर्थकरो और उनके समकालीन महापुरुषों का १. उमाकांत परमानंद शाह : स्टडीज इन जैन पार्ट, पृ०४ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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