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जैन प्रतिमाविज्ञान
विवरण दिया गया है और उसके साथ प्रतिमा पूजा संबंधी जानकारी भी दी गयी है।
प्रथमानयोग के पुराण और चरितग्रन्थों के अलावा करणानुयोग साहित्य के ग्रन्थों में भिन्न-भिन्न द्वीप, क्षेत्र, पर्वत आदि स्थानों में स्थित जिनालयों और जिनबिम्बों का वर्णन है । उन्ही स्थानों में निवास करने वाले चतुनिकाय देवों के संबंध में भी करणानुयोग साहित्य में विस्तार से जानकारी मिलती है। उमाम्वाति के तत्त्वार्थमूत्र को दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में मान्यता प्राप्त है । इस सूत्रग्रंथ के तृतीय और चतुर्थ अध्याय में अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक का वर्णन है । पद्मनन्दि के जंबूदीपपण्णत्तिसंगहो, यतिवृषभ के तिलोयपत्ति, नेमिचन्द्र के बिलोकसार तथा जंबू द्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपसमास, क्षेत्रममास, संग्रहणी प्रादि की विपयभूत सामग्री से भी जैन प्रतिमा-विज्ञान के विभिन्न अंगों का प्रामाणिक ज्ञान होता है ।
तीर्थकरों और सरस्वती, चक्रेश्वरी, अम्बिका, पद्मावती आदि देवियों की स्तुतिपरक स्तोत्र, प्राचार्यों और पंडितों द्वारा रचे गये थे । यह स्तोत्रसाहित्य जैन प्रतिमाशास्त्र के अध्ययन के लिये भी मूल्यवान् है । प्राचार्य समन्तभद्रका स्वयंभूस्तोत्र इस विषयक प्राचीनतर कृति है । पाँचवी-छठी शताब्दी में मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र और कुमुदचंद्र ने कल्याणमंदिर स्तोत्र की रचना की। इनमें क्रमशः आदिनाथ और पाश्र्वनाथ की स्तुति है । दोनों स्तोत्रों का जैन समाज के दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों में प्रचार है । धनंजय कवि ने सातवीं शताब्दी में विषापहार स्तोत्र की, और वादिराज ने ग्यारहवी शताब्दी में एकीभाव स्तोत्र की रचना की थी। जिनसहस्रनाम स्तोत्रों में भगवान् जिनेन्द्र देव को ब्रह्मा, विष्ण आदि नामों से भी स्मरण किया गया है । सिद्धसेन दिवाकर के जिनसहस्रनाम स्तोत्र का उल्लेख मिलता है। नौवी शताब्दी ईस्वी में प्राचार्य जिनसेन ने, तेरहवी शताब्दी में आशाधर पंडित ने, सोलहवी शताब्दी में देवविजयगणि ने और सत्रहवीं शताब्दी में विनयविजय उपाध्याय ने जिनसहस्रनाम स्तोत्रों की रचना की थी। बप्पभट्टि, शोभनमुनि और मेरुविजय की स्तुतिचतुर्विशतिकाएं प्रसिद्ध हैं। इन स्तोत्रों और स्तुतियों में जिन भगवान् के बिम्ब का शाब्दिक प्रतिबिम्ब परिलक्षित होता है।
अनेक प्राचार्यों और पंडितों ने सरस्वती, चक्रेश्वरी अम्बिका जैसी देवियों के स्तुतिपरक स्तोत्रों की भी रचना की थी। उदाहरण के लिये, प्राशा