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अष्ट मातृकाएं
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कराल दिखायी पड़ता है; केशों से ज्वालाएं निकलती हैं । चामुण्डा त्रिनयना है । शूल, कपाल, खड्ग और प्रेतकेश (मुण्ड) इन्हें वह अपने हाथों में धारण करती है। भवानी /माहेश्वरी
वेदी के पूर्वोत्तर कोण में माहेश्वरी का स्थान होता है जिसे भवानी और रुद्राणी भी कहा जाता है। भवानी का वर्ण श्वेत, वाहन शाक्कर और मायुध भिण्डिमाल है। प्राचारदिनकर के अनुसार माहेश्वरी के प्रायुध, शूल, पिनाक, कपाल और खट्वांग हैं । माहेश्वरी का वर्ण श्वेत, वाहन वृषभ और नेत्र तीन हैं । उसके ललाट पर प्रर्धचन्द्र बताया गया है । गजचर्म गे प्रावृत माहेश्वरी शेषनाग की मेखला धारण करती है । 3
१. उदय ६, पन्ना १३ २. प्रतिष्ठातिलक, पन्ना ३६६ ३. देवीमाहात्म्य आदि जैनेतर कृतियो में नारमिही को भी मातृकानों
की सूची में सम्मिलित किया गया है किन्तु वह रूपमण्डन की सूची में नहीं है।