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नवम प्रध्याय
अष्ट मातृकाएं इन्द्राणी, वैष्णवी, कौमारी, वाराही, ब्रह्माणी, महालक्ष्मी, चामुण्डी पौर भवानी इन आठ देवियों की ख्याति मात का नाम से है। इनमें से प्रथम चार की स्थापना दिशामों में मोर अन्य चार की स्थापना विदिशामों में की जाती है । जैन ग्रंथों में मातृकानों के रूप का लगभग वैसा ही वर्णन प्राप्त होता है जैसा कि हिन्दू शिल्प ग्रंथों में है । कही कही चामुण्डा और महालक्ष्मी को छोड़कर छह मातृकाएं भी बतायी गयी हैं । शिल्प शास्त्रो मे मातृकामों की सामान्य संख्या सात ही है पर कभी कभी वह संख्या सोलह तक बता दी जाती है। इन्द्राणी
इन्द्राणी की स्थापना पूर्व दिशा में की जाती है । उसका वर्ण सोने के समान है । वह ऐरावत गज पर प्रासीन रहती है । इन्द्राणी का प्रमुख प्रायुष वज है।' वैष्णवी
वैष्णवी की स्थापना वेदी की दक्षिण दिशा में की जाती है । वह देवी गरुडवाहना एवं नील वर्ण की मानी गयी है । वैष्णवी का मुख्य प्रायुध चक्र है।' प्राचारदिनकर में उसे श्याम वर्ण की तथा शंख, चक्र, गदा और शार्ष (खड्ग) धारिणी कहा है।' कौमारी
वेदी की प्रतीची दिशा में स्थित कौमारी प्रचणमूर्ति, विद्रुम वर्ण, मयूरवाहना और खगधारिणी है।' प्राचारदिनकर में उसे गौरवर्ण पौर पण्मुखा बताते हुए उसके प्रायुध शूल, शक्ति, वरद मोर प्रभय, ये चार कहे गये हैं।
१, प्रतिष्ठातिलक, प.ष्ठ ३६५ । प्राचारदिनकर, उदय ६, पन्ना १३ २. प्रतिष्ठातिलक, पन्ना ३६५ ३. उदय ६, पन्ना १३ ४. प्रतिष्ठातिलक, पन्ना ३६५ ५. उदय ६, पन्ना १३