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________________ शासन देवताओं की उत्पत्ति १०७ अम्बिका या कूष्माण्डी का नाम विद्यादेवियों की सूची में नहीं मिलता।' इस प्रकार अम्बिका का उल्लेख पूर्व में मिलने लगा था; उसकी प्रतिमाएं ५५० ईस्वी के लगभग (संभवतः उममे पूर्व भी) निर्मित होने लगा थी। अम्बिका को प्राचीन प्रतिमाएं अकोटा, मेगुटि मंदिर ऐहोल, महुडी, ढाक और मथुरा में उपलब्ध हुयी है। सर्वानुभूति / सर्वात कुवेर जैसे जिस यक्ष की प्रतिमाएं प्रायः सभी तीर्थकरों को प्रतिमानों के साथ देखी जाती है. उम यक्ष को श्री उमाकान्त गाह सर्वानभूति यक्ष से अभिन्न मानते है । प्रतिक्रमण मूत्र की प्रबाधा टीका' में सर्वानभूति यक्ष का वर्णन मिलता है । वह यक्ष दिव्य गज पर प्रारूढ़ कर विचरण किया करता है। __तिलोय पण्णत्नी में अनेक स्थलों पर सर्वात नामक यक्ष की प्रतिमाओं (रूप) का उल्लेख किया गया है ।' बाद के प्रतिष्ठा ग्रन्थों में भी सर्वाण यक्ष का विवरण मिलता है। उसे भी दिव्य श्वेत गज पर प्रारूढ़ बताया गया है । वह जैन पूजा-यज्ञ प्रादि को रक्षा किया क ता है। अन्य शासन देवता __ पाठवी शताब्दी ईस्वी में रचित भद्रेश्वरमूरि की कहावलो की स्थविरावली में विभिन्न शामन देवतामों का उल्लेख मिलता है पर उम ममय की कला में अम्बिका जैमी देवियों को छोड़कर अन्य गामन यक्षों या यक्षियों की प्रतिमाएं प्राप्त नही होती है । भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि की नवमुनिगुफा में जो कुछेक यक्षी प्रतिमाएं है, उनका काल नौवी शताब्दी प्रांका गया है । १. संभवत: वही अप्रतिचक्रा है। २. प्रबोधा टीका, जिल्द ३, पृष्ठ १७० निप्पंकव्योमनीलद्युतिमलमदृशं बालचन्द्राभदंष्टम मतं घण्टारवेण प्रसूतमदजलं परयन्तं समन्तात् । मारूढ़ो दिव्यनागं विचरनि गगने कामद : कामरूपी यक्ष : सर्वानुभूतिर्दिशतु मम सदा सर्वकार्येषु मिद्धिम् ।। ३. ४/१८८१ प्रादि ४. प्रतिष्ठातिलक, पन्ना EE
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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