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________________ शासन देवताओं की उत्पत्ति श्री उमाकान्त परमानन्द शाह ने शासन देवतामों के जैन शासन में प्रवेश के संबंध में विस्तार से विवेचन किया है ।' उन्होंने बताया है कि अकोटा की कायोत्सर्ग ऋषभनाथ प्रतिमा के साथ प्रथम बार शासन देवताग्री की प्रतिमाएं देखी गयी है। वह प्रतिमा अनुमानत: ५५० ईस्वी के लगभग की कला. कृति है । उस पर उत्कीर्ण लेख में जिनभद्र वाचनाचार्य का उल्लेख है जिन्हें श्री शाह ने जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण से अभिन्न माना है। उपर्युक्त ऋषभनाथ प्रतिमा के साथ प्राप्त यक्ष और यक्षी का रूप क्रमशः कुबेर और अम्बिका जैसा है। श्री शाह का मत है कि नौवीं शताब्दी ईस्वी के अन्त तक सभी तीर्थकरों की प्रतिमानों के साथ कुबेर और अम्बिका की जोड़ी ही बनायी जाती रही है जैसाकि एलोरा तथा अन्य स्थानों को तीर्थकर प्रतिमाओं में देखा जाता है। मध्यकाल में भारत में तांत्रिक युग प्राया। उसके प्रभाव से ही बौद्धों में वजयान सम्प्रदाय का निर्माण हुप्रा । तांत्रिक युग में नये नये देव और देवियों की कल्पना की गयी और उनकी पूजा का प्रचार-प्रसार हुमा। पुराने देवों को नये रूप दे दिये गये। पूर्व में जो देव द्विभुज थे, उनके हाथों की संख्या बढ़ी । अवलोकितेश्वर सहस्रभुज तक बन गये। जैनों पर भी तांत्रिक युग का प्रभाव पड़ा । वैसे तो जैनों ने अपनी प्राचारविधि के मूल रूप की रक्षा करने का यथाशक्य प्रयास किया पर तंत्र उस समय युगधर्म बन चुका था, इसलिये जैन लोग उससे अछते नहीं बचे। जैनों को भी नये नये देवों और देवियों की कल्पना करनी पड़ी। सोमदेवसूरि ने स्वीकार किया है कि शासन की रक्षा के लिये परमागम में शासन देवताओं की कल्पना की गयी है। जैनों की इतनी विशेषता अवश्य रही कि उन्होंने नये देवतानों को तीर्थंकरों के रक्षक और सेवक देवतामों के रूप में प्रस्तुत किया और तीर्थंकरो के देवाधिदेव पद की पूर्ण रूप से रक्षा की। तंत्र से प्रभावित जन प्राचार्यों ने ज्वालिनीकल्प और भैरवपदमावतीकल्प जैसी रचनाएं भी की और विशिष्ट चमत्कारों का प्रदर्शन किया। १. प्रोसीडिग्ज एण्ड ट्रान्जेक्शन्स प्राफ दि अॉल इण्डिया मोरियण्टल कान्फ्रेन्स, भुवनेश्वर, १९५६ २. वही, पृष्ठ १४२ ३. उपासकाध्ययन, ध्यानप्रकरण, श्लोक ६६७-६६
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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