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________________ १०४ जन प्रतिमा विज्ञान मिहारिका चौबीमवे तीर्थकर महावीर स्वामी की यक्षी मिढायिका है । उमे सिद्धा. यिनी भी कहा जाता है । प्रवचनमारोद्धार मे उमका नाम केवल मिद्धा मिलता है । मिद्धायिका यक्षा का वर्ण दिगम्बरो के अनुमार म्वगा जैमा है पर नेमिचन्द्र ने इन्द्रनीलवर्ण का उल्लेख किया है । श्वेताम्बर परम्परा में सिद्धायिका को हरित् वर्ण वाली माना गया है। वमुनन्दि ने मिद्धायिका को भद्रासना, प्राशाधर ने भद्रासना और मिहगति, नेमिचन्द्र ने भद्रासना और हंसगति, अपराजित पृच्छाकार ने भद्रासना, रूपमण्डन मे मिहारूदा या मिद्धारूढा, निर्वाणकलिका और प्राचारदिनकर मे मिहवाहना एव अमरचन्द्र ने गजबाहना कहा है । दिगम्बरों के अनुमार यह यक्षी द्विभुजा है और श्वेताम्बरो के अनुसार चतुर्भुजा । अपगजिनपृच्छा मे द्विभुजा और रूपमण्डन मे चतुर्भुजा का विधान है । दिगम्बर परम्परा के अनुसार, सिद्धायिका का दाया हाथ वरद मुद्रा में होता है और उसके बाये हाथ मे पुस्तक रहती है ।' अपराजितपच्छा में दायां हाथ अभयमुद्रा में और बाया हाथ पुस्तकयुक्त बताया गया है। श्वेताम्बर परम्परा के प्राचारदिनकर के अनुसार इस यक्षी के दाये हाथो मे पुस्तक और अभयमुद्रा तथा बाये हाथो मे पाश और कमल होते है । निर्वाणकलिका मे बाये हाथो में मातुलिंग और वीणा का विधान है।' रूपमण्डन मे वीणा के स्थान पर वाण का उल्लेख है जो संभवत: भूल है । शासन देवताओं की उत्पत्ति प्राचीनतम जैन साहित्य मे शासन देवतामों का विवरण नही मिलता। प्राचीनतम तीर्थंकर प्रतिमानो के साथ भी शासन देवतामो की प्रतिमाएं नही मिली है । इसके ज्ञात होता है कि जैन प्रतिमा निर्माण के प्रारभिक काल मे शासन यक्षो पौर यक्षियों की प्रतिमाएं निर्मित किये जाने की परम्परा नहीं थी। १ प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५/६६-६७; प्रतिष्ठामारोदार, ३/१७८; प्रति ष्ठातिलक, पृष्ठ ३४८. २. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७८ ३. निर्वाणकलिका, पन्ना ३७
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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