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________________ १०२ जन प्रतिमाविज्ञान म्मरण किया है । इम यक्षी को लेकर अनेक कल्पों और स्तोत्रों की रचनाएं हुयी है । इन्द्रनन्दि का पद्मावती पूजन, मल्लिषेण का भैरवपद्मावतीकल्प, यशोभद्र उपाध्याय के गिप्य श्रीचन्द्र मूरि का अद्भुत पद्मावतीकल्प ग्रादि उनमें प्रमुख हैं। दिगम्बरो के अनुमार पद्मावती का वर्ण रक्त है। अपराजित पृच्छा और रूपमण्डन ने भी उमे रक्तवर्ण बताया है। श्वेताम्बर ग्रंथो के अनुमार वह मुवणं के समान पीनवर्ण की है । वमुनन्दि पद्मावती का पद्मामीना कहते है। अागाधर पद्मस्था नो कहते ही है पर कुकुंटमपंगा भा बताते है । अपराजिनपृच्छा मे पद्मामना और कुक्कुटम्था तथा म्पमण्डन मे कुकुंटोग्गम्या का विधान किया गया है । मल्लिषेण ने पद्मस्था कहा है। श्वेताम्बर ग्रयों में से त्रिपटिश नाकापुरषचरित्र पौर प्राचारदिनकर में पद्मावतीको कुकुट मर्प पर स्थित बताया गया है किन्तु श्रीचन्द्रमूरि ने उसे पद्म एवं हम पर स्थित कहा है। मल्लिषेण ने पद्मावत को ग्रिलोचना बताया है। प्राशाधर और श्रीचन्द्रमूर ने त्रिफणसर्पमोलि तथा मल्लिषेण ने पन्नगाधिपगेवर पाद विशेषणों द्वारा मूचित किया है कि पद्मावती के मस्तक पर सर्पफण का चत्र होता है। पद्मावती की भुजामो की मख्या के संबंध में मतभिन्नता है । वमुनन्दि और नेमिचन्द्र उसे चार, छह या चौवीस भुजानो वाली बनाते है । प्राशाधर ने चार, छह और पाठ भुजानों का उल्लेख किया है । श्वेताम्बर ग्रन्थों में सामान्यतया पद्मावती देवी को चतुर्भुजा ही कहा है । उसी प्रकार, मल्लिषेण, श्रीचन्द्रमूरि, अपराजितपच्छाकार एव रूपमण्डनकार भी पद्मावती को चतुर्भजा मानते है । नमिचन्द्र के अनुमार पद्मावती देवी के आयुध निम्न प्रकार है :चतुर्भुजा : दाये हाथों में अक्षमाला पौर वरदमुद्रा तथा वायें हाथो में __अंकुश और कमल । षड्भुजा : पाग प्रादि (विवरण अपूर्ग) चतुर्विशतिभुजा : शंख, तलवार प्रादि (विवरण प्राणं)' प्राशाधर ने नेमिचन्द्र के समान मत प्रकट किया है। अन्तर केवल इतना है कि माशाधर के अनुसार चतुर्भुजा पद्मावती के दायें हाथों के प्रायुधों में १. प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३४७-४८
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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