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शासन यक्षियां
मानते हैं पर श्वेताम्बर लोग चतुर्भुजा । शुभचन्द्राचार्य ने तीन स्थितियो में तीन प्रकार से भजायों की संख्या का विधान किया है। तदनुसार जब यक्षी अरिष्ट नेमि के पादमूल में स्थित हो तो अष्टभुजा होती है; जव उसकी प्रतिमा मिहामन पर बनायी जावे तो चतुर्भुजा और जब पाश्व में स्थित की जावे तो द्विभुजा होना चाहिये । आशाधर के अनुसार प्राम्रा देवी प्राम्र वृक्ष को छाया में स्थित होती है । नेमिचन्द्र ने उसे पाम्रवृक्ष की छाया में वाम कटि पर प्रियंकर को रखे हुये बताया है । अपराजितपृच्छा में भी इस यक्षी को पुत्रण उपास्यमाना और मुतोत्संगा कहा गया है।
अपराजितपृच्छा मे, अम्बिका का दायां हाथ वरद मुद्रा में और बायें हाथ में फल का होना बताया गया है। प्राशाधर के अनुसार अम्बिका के दायें हाथ की अंगुलियां अपने पुत्र शुभंकर के हाथ को छूती हुयी दिखायी जाती हैं और बायें हाथ में वह गोद में बैठे प्रियंकर के लिये प्राम्रस्तबक पकड़े रहती है।' नेमिचन्द्र ने भी उसी प्रकार का विवरण दिया है ।२ श्वेताम्बर परम्परा के प्रवचनमारोबार में अम्बिका के दाये हाथों में प्रानलुम्बि और पाश तथा बायें हाथों में चक्र और अंकुश बताये गये हैं । त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र के अनुमार यक्षी के दायें हाथों में प्राम्रलुम्बि और पाश तथा बायें हाथों में पुत्र और अंकुश होते हैं। रूपमण्डन ने पाश के स्थान पर नागपाग कहा है । प्राचारदिनकर का मत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र जैमा है। किन्तु निर्वाणकलिका में आम्र लुम्बि या पाम्राली के स्थान पर मातुलिंग का उल्लेख किया गया है।' शुमचन्द्र प्राचार्य ने चतुर्भुजा अम्बिका के प्रायुध शंख, चक्र, बरद और पाश बताये हैं। उन्ही प्राचार्य ने अष्टभुजा स्थिति में आम्रकूष्माण्डी को शंख, चक्र, धनुष, परशु, तोमर, तलवार, पाश और कोक्षेय इन प्रायुधों से युक्त कहा है । पद्मावती
तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की यक्षी पद्मावती को तिलोयपण्णत्ती में पद्मा कहा गया है। इन्द्रनन्दि और मल्लिषेण ने भी उसे पद्मा नाम से
१. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/९७६ २. प्रतिष्ठातिलक पृष्ठ ३४७ ३. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना; १७६ ४, निर्वाणकलिका, पन्ना ३७