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________________ १०० जन प्रति माविज्ञान गांधारी के प्रायुधो के बारे मे मनवैषम्य देखा जाता है । त्रिषप्टिशलाकापुरुप-- चरित्र और अमरकाव्य के अनुमार गापारी के दाये हाथों में वरद और खड्ग तथा दोनो बारे हाथो मे बीजर है। प्राचारदिनकरकार बाये हाथो में शकुन्त (पक्षी) और बीजपूर कहत है' जबकि निर्वाणलिका कुम्भ अोर बीजपूर का उल्लेख करती है। ग्राम्रा अम्बिका बाईमवे तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षी ग्राम्रा या अम्बिका है । टस देवी के अनक नाम है। वेताम्बर गुभचन्द्र प्राचार्य ने दमके अम्बा, पाम्नकप्माण्टी, अबिला, तारा, गौरी, वजा प्रादि नाम कहे है।' तिलीयपणनी में कृप्माण्डो तथा प्रवचनमागेद्धार में अम्बा नाम मिलते है। अगजितपृच्छा बाईमवें तीर्थकर की यक्षी के चामुण्डा और अम्बिका दोना नाम कहती है। अभिधानचिन्तामणि म अम्बा नाम है पर त्रिषष्टिगलाकापुम्पचरित्रमे काम ण्डी। वमुन्दि, ग्रागाधर ग्रार नमिचन्द्र न ग्राम्ना नाम से इस यक्षीका वर्णन किया है पर वसुनन्दि ने अपर नाम प्माण्डी भी बताया है । अम्बिका देवी का एक अन्य नाम धर्मा देवी भी है। इस यक्षी को प्राचारदिनकर गे अम्बा, निर्वाणलिका में कूष्माण्डी पीर अमरकान्य म अम्बिका कहा गया है । जैन परम्परा में अम्बिका देवी की बटी मान्यता रही है । महामात्य वास्तुपाल विरचित अम्बिका स्तवन और जिनश्वरदत्तमूरि कृत अम्बिकादेवीस्तुति जैमी अनेक रचनाए अम्बिका की स्तुति में रची गयी थी। दिगम्बरो के अनुसार प्रानादेवी हरित वणं है । अपराजितपुच्छा मे भो उमे हरित कहा गया है । श्वेताम्बरो ने अम्बिका को सुवर्ण के समान पात वर्ण की माना है । रूपमण्डन ने भी पीत ही कहा है। __ इस यक्षो का वाहन सिह है । प्राशाधर ने भर्तचर विशेषण दिया है जिसका सकेत पूर्व जन्म को कथा के प्रति है। दिगम्बर लोग अम्बिा को द्विभुजा १ प्राचार'दनकर, उदय ३३, पन्ना १७७ । यदि शकुन्त को मकुन्न (यद्यपि वह अशुद्ध होगा) माने तो एक अायुध कुन्न होगा। २. निर्वाणलिका पन्ना ६६ । कुम्भ के स्थान पर कुन भी हो सकता है ? ३. अम्बिकाका, ७/२--३ । शुभच द्राचार्य ने अम्बिका कल्प की रचना जिनदत्त के प्रारह स ब्रह्मगोल के पठन के लिए की थी।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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