SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शासन यक्षिया ६६ गौर वर्ण है । बहुरूपिणी का वाहन कृष्ण नाग है । नरदत्ता भद्रासना है । बहुरूपिणी और नरदत्ता दोनों चतुर्भुजा है पर अपराजितपृच्छा की देवी द्विभजा है जो खड्ग-खेटक धारण करती है । वसुनन्दि ने बहुरूपिणी को अष्टानना, महाकाया और जटामुटभूषिता कहा है । बहुरूपिणी के दायें हाथों में खड्ग और वरद तथा बायें हाथों में खेट और फल होने का विधान है ।' नरदत्ता के प्रायुधों के संबंध में किञ्चित् मतवंषम्य है। प्राचारदिनकर और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित उसके दायें हाथो में वरद और अक्षमूत्र तथा वांये हाथों में मातुलिंग और शूल बताते है किन्तु निर्वाणकलिका में शूल के स्थान यर कुम्भ कहा गया है।' चामुण्डा/गांधारी इक्कीसवें तीर्थकर नेमिनाथ की यक्षी को दिगम्बर लोगों ने चामुण्डा और श्वेताम्बर लोगों ने गांधारी नाम दिया है । नेमिचन्द्र ने उसे चामुण्डिका और वमुनन्दि ने कुसुममालिनी भी कहा है । तिलोयपण्णत्ती के अनुसार बहु-- रूपिणी बाईसवें तीर्थकर की यक्षी है । चामुण्डा का वर्ण हरित् कहा गया है और गांधारी का श्वेत । वसुनन्दि ने चामुण्डा को नंदिवाहना बताया है किन्तु प्रागाधर और नेमिचन्द्र उ मकरवाहना कहते है । अपराजितपृच्छा की देवी मर्कट पर सवारी करती है । गाधारी हंसवाहना है । वसुनन्दि के अनुसार चामुण्डा प्रप्टभुजा और चतुर्भुजा दोनों विग्रह वाली है पर प्राशाधर और नेमि चन्द्र उसे चतुर्भुजा ही मानते हैं । अपराजिनपृच्छा की देवो अष्टभुजा है । श्वेताम्बरों की गांधारी के भी चार हाथ है। चामुण्डा को वमुनन्दि ने चतुर्वक्त्रा (चारमुखवाली) और रक्ताक्षा भी कहा है पर अन्य ग्रन्थो में इसका उल्लेख नही मिलता । अपराजिताच्छा में बहुरूपिणी नाम की देवी के माठ प्रायुध शूल, खड्ग, मुद्गर, पाश, वज्र, चक्र, डमरू और अक्षमूत्र बताये गये है । दिगम्बर ग्रन्थ चामुण्डा के चार प्रायुध बताते हैं । तदनुमार उसके दायें हाथों में अक्षमूत्र और तलवार तथा बायें हाथों में यष्टि और खेट हुमा करते हैं ।' १. प्रतिष्ठासारोद्धार, ३/१७४; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३४७ २. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७८ । ३. निर्वाणकलिका, पन्ना ३६ ४. प्रतिष्ठासारसंग्रह, ५/५७ ५. प्रतिष्ठासारोदार, ३/१७५; प्रतिष्ठातिलक,पृष्ठ ३४७ ।
SR No.010288
Book TitleJain Pratima Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchand Jain
PublisherMadanmahal General Stores Jabalpur
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy