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जैन प्रतिमाविज्ञान
है। कन्दा दायें हाथों में कमल और अंकुश तथा बायें हाथों में से एक में पुनः कमल धारण करती है और उसका दूसरा बायां हाथ अभय मुद्रा में होता
महामानसी /निर्वाणी
_____ सोलहवें तीर्थकर शान्तिनाथ की यक्षी दिगम्बरों के अनुसार महामानसी और श्वेताम्बरों के अनुसार निर्वाणी है। वसुनन्दि ने महामानसी का पर्याय नाम कंदर्पा बताया है । अपराजितपुच्छा में तिलोयपण्णत्ती का अनुसरण करके मानसी नामही बताया है। प्राचारदिनकर में निर्वाणी के स्थानपर निर्वाणा नाम माना है । महामानसी का वर्ण सोने के समान पीत है । निर्वाणी को गौर वर्ण कहा गया है, पर प्राचारदिनकर ने उसे भी मुवर्ण के समान वर्ण वाली बताया है।
अपराजितपृच्छा की मानमी पक्षिराज पर सवारी करती है पर महामानसी का वाहन मयूर है । निर्वाणी पद्मपर स्थित होती है ।
दोनों प्रकार से सोलहवें तीर्य कर की यक्षी चतुर्भुजा है। अपराजितपृच्छा ने उसके हाथों में वाण, धनुष, वज्र और चक्र ये प्रायुध बताये हैं। वसुनन्दि के अनुसार,फल, ईढि (तलवार),चक्र और वरद ये चार प्रायुध है ।' प्राशाधर और नेमिचन्द्र ने दायें तथा बायें हाथों के प्रायुध अलग अलग गिना दिये हैं । तदनुसार महामानमी के दायें हाथों में ईढि और वरद तथा बायें हाथों में चक्र और फल होते हैं । निर्वाणी के दाये हाथों में पुस्तक और उत्पल (कमल) तथा बायें हाथों में कमण्डलु और कमल होते है ।" प्राचारदिनकर ने पुस्तक के लिये कल्हार और कमण्डलु के लिये कारक पद का प्रयोग किया है।' जया बला
____ सत्रहवें तोयंकर कुन्थुनाथकी यक्षो का नाम दिगम्बर और श्वेताम्बर परभरामों में क्रमशः जया पौर बला है । वसुनन्दि ने जया देवी को गांधारी भी कहा है । तिलीयपण्णत्ती और अपराजितपृच्छा में उसका महामानसी नाम मिलता है जबकि प्रवचनसारोद्धार में अच्युता नाम से उल्लेख है।
१. प्रतिष्ठासारोदार, ३/१६६; प्रतिष्ठातिलक, पृष्ठ ३४५ २. निर्वाणकलिका, पन्ना ३६; प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७७ ।
प्रतिष्ठासारसंग्रह ५/४७ ४. प्रतिष्ठासारोदार ३/१७०; प्रतिष्ठातिलक,पृष्ठ ३४५ । ५. निर्वाणकलिका, विषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, अमरचंद्र प्रादि । ६. प्राचारदिनकर, उदय ३३, पन्ना १७७