________________ शासन यक्षिया जया सुवर्ण के समान पीत वर्ण है। बला गौर है, पर प्राचारदिनकर ने उसे प्रतिपीत वर्ण कहा है / जया का वाहन कृष्ण शूकर और बला का वाहन मयूर है। दोनों चतुर्भुजा हैं किन्तु अपराजित पृच्छा की यक्षी षड्भजा है। अपराजिनपृच्छा ने यक्षी के प्रायुध वज, चक्र, पाश, अंकुग, फल और वरद बताये है / वसुनन्दि के अनुसार जया के प्रायुध शंख, तलवार, चक्र और वरद ये चार है / ' आगाधर और नेमिचन्द्र ने दायें हाथों में तलवार और वरद तथा बाये हाथों में चक्र और शख आयुध बताये है / ' बला के प्रायुधों के बारे में मनवैषम्य है / त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, अमरमहाकाव्य और निर्वाण कलिका में उसके दायें हाथों में बीजपूर और शूल तथा बायें हाथों में मुपण्डा और कमल बताये गये है किन्त प्राचारदिनकर मे शूल के स्थान पर विगूल और दोनों बायें हाथों में भरॉडि का उल्लेख है जो संभवतः मुषण्ढी होना चाहिये / ' तागवती/धारिणी अठारहवें तीर्थकर अरनाथ की यक्षी दिगम्बरों के अनुमार नारावती और श्वेताम्बरों के अनुसार धारिणी है / वमनन्दि ने तारावती का पर्याय नाम काली भी कहा है / तिलोयपण्णत्ती का अनुमरण करते हुये अपराजितपृच्छा में उसका नाम जया बताया गया है / प्रवचनमारोद्धार में धारिणी के स्थान पर धरणी नाम मिलता है / यक्षी तारावती मोने के समान पीतवर्ण की है। किन्तु धारिणी को प्राचारदिनकर, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि में नीलवर्ण बताया गया है जबकि निर्वाणकालिका के अनुमार उमका वर्ण श्याम है / तारावती का वाहन हम है / अपराजितपृच्छाके अनुमार उसके प्रायुध वज्र, चक्र, फल और सर्प हैं / वमुनन्दि ने सर्प, वज्र, मृग और वरद ये चार प्रायुध बताये है / ' उनमें से वज्र और वरद को प्राशाधर और नेमिचन्द्र ने दायें हाथों के, नथा सर्प और मृग को बायें हाथों के प्रायुध बताया है / ' धारिणी के 1. प्रतिष्ठासारसंग्रह, 5/46 2. प्रतिष्ठासारोद्धार, 3/171; प्रतिष्ठानिलक 345-46 / 3. निर्वाणकलिका, पन्ना 36 / 4 प्राचारदिनकर, उदय, 33, पन्ना 177 / 5. प्रतिष्ठासारसंग्रह. 5,51 6. प्रतिष्ठामारोद्धार 3/172