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छद्म-आत्म-स्वरूप के आच्छादक ज्ञानावरण, दर्शनावरण आदि
कर्म । छद्मस्थ-चार गतियो में भूमण करने वाला जीव , अल्पज्ञ ,
संसारस्थ जीव , सकषाय सावरण जीव । छन्दना-भोजन के लिए साधु द्वारा अन्य संघस्थ साधु को
निमन्त्रण । छल-बत्तीस सूत्र दोषो में से पांचवा , वचन-युद्ध । छेद-१. प्रायश्चित विशेष, २. शुद्धि परीक्षण का एक अवयव,
३ निर्दोष आचरण, ४ विभाग, ५ अभाव । छेदन-कर्मों की स्थिति का विघात करना। छेदगति-शब्द पुदगलों की गति । छेदोपस्थापना-निर्विकल्पता का सद्भाव । छेदोपस्थापना-चारित्र-दोष-निवारण के लिए प्रतीकार ।
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