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________________ anwarwwerwwwnoamarawwarananewwwanterwasnawwNwanNORTHomwwwnewwwwse १७८] . जैन युग-निर्माता। जायगी ? क्या गरीब, बेसूर जानवरों की हत्या करना ही मनुष्यको बहादुरी है ? धन्य है उनकी बहादुरीको । सिंह और बाघको देखकर यह दृा भाग जयेंग और गर ब जीवों की दम पका हत्या करेंगे क्या गराव ही इनका भाषी है ? मैं इन्हें अभी छोड़ देता हूं। ____ कुगा नेमिनाथन बााका दाबाना खोल रिया । सभी जानवर भनी २ जान ले २ मौके पिंजडेसे निकले और नमिकुमारको काशीद दन हुए जल अग्नी २ जगहको चल दिए। नाम थन का-जा गरीब प्राणियों जाओ, अपने बच्चोंसे मिला . आदरे घनो और व अग्ने जीत को सोत कगे। मेर विर के कारण तुम्हें इतनी त लीफ महन करना पड़ी, इ-ना दुःख भोगना रहा इसके लिए मुझे माफ करना । गरीच जान. वरों ! हममें मेरा कुछ में +नही है. मुझे तुम्हारी इस मुशीबत का कुछ भी पता नहीं था, ओह ! मनुष्य नाति दूसरों के पों की कुछ भी करत नहीं ममहाती । रियों को इस स्वार्थ के लिए धिक्कार है और उस मत संभारको विक्कर है जिसमें मनुष्य ऐसे निर्दय काम करना है। साथी मग रथ घरकी ओर ले चलो। साथी ने कहा- महाराज ! यइ क्यों ? बगतके लोग आ रहे है महाराजा प्रसेन आरके भाकी बाट देख रहे होंगे । नेमिनाथने विक्त होकर कहा- नहीं साम्यो, मे। रथ लौटा दो, मन मैं अपना विवाह नहीं करूंगा, मेरे विवाह के लिए इतनी जीव हिंमा होरही हो मैं नहीं देख सकता। मैं संसारको दयाका उपदेश दूंगा, मैं संसारके
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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