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१६४) जैन युग-निर्माता । उनकी अंगुली पर झुलते हुए देखा-दर्शकोंके आश्चर्यकी अब सीमा नहीं रही, उन्होंने अपने दांतों के नीचे अंगुली दबाकर इस मुग्घकारी प्रदर्शनको देखा-वे एक क्षणको भात्मविस्मृत होकर सोचने लगेलोह ! इतनी शक्ति ! इतना पराक्रम ! क्या हम लोग जागृतिमें है अथवा स्वनमें ? इस मुकुमार शरीरमें इतनी शक्तिकी कभी कल्पना की जा सकती थी। वास्तवमें इस सारे संसारमें नेमिनाथ अपनी शक्ति में अद्वितीय है।
शक्ति प्रदर्शन समाप्त हुआ। श्रीकृष्णजीको हृदय पर इस शक्ति प्रदर्शनसे गहरी चोट लगी । बहुत प्रयत्न करके रोकने पर भी अपने चेहरे परके निराशाके भावोंको वे नहीं रोक सके । उनका चमकता हुमा चेहरा एक क्षणको मलिन पड़ गया। एक गहरी निराशाकी सां लेकर उन्होंने अपने मनमें कहा-'अब सचमुच ही मेरे राज्यकी कुगल नहीं है। उनके निकट ही खड़े हुन बलभद्रजीने उनको भावनाको समझा। वे बोले-भाई कृष्ण ! आप अपने हृदयकी चिंता त्याग दीजिए, आप जो सोच रहे हैं वह कभी नहीं होगा । कुमार नेमिनाथ तो बालकपनसे ही वैरागी हैं, भला एक वैरागीको राज्यपाटसे क्या मतलब है?
___ बलभद्रजीके संबोधनसे श्रीकृष्णजीके हृदयका भय कुछ कम हुमा। उन्होंने संतोषकी सांस ली और नेमिनाथजी के पति अपना पूर्ववत् प्रेमभाव प्रदर्शित किया ।
समा विसर्जित हुई। श्रीकृष्णजी अपने राज्यमहलकी मोर चले लेकिन राज्य सभाका वह दृश्य उनके नेत्रोंके साम्हने घूम रहा