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NIGAMNIWANWAMAN
तपस्वी वालिदेव । [१५५ हो गया। उसका सारा अभिमान, उसकी सारी शक्ति, उसका समस्त विद्या, बल एक क्षणको कपूरके सदृश हो गया। मभिमानी मानव ! इसी नश्वर वैभवके अभिमानके बल पर, इसी क्षणिक शक्तिके नशेमें, इसी किंचित् विद्या बलके ऊार संसारका तिरस्कार करनेको तुक नाता है। धिकार ! तुम्हारी बुद्धिपर, शतवार धिक्कार है उसके भाभिमान पर । माज वह मभिमान मला फाड़कर रो रहा था। मान उस मभिमानका सर्व नाश हो रहा था ? क्या माज दशाननके उस अभिमान कुमित्रका कहीं पता था ?
___ समस्त मानव मंडळ बढ़ता है और गिरता भी है, अभिमानी और निरभिमानी एक दिन समय पाकर सभी गिरते हैं, किन्तु निरभिमानी व्यक्तिका वास्तवमें पतन नहीं होता। उसे खेद नहीं होगा ! अभिमानी खुब चढ़ता है मानेको धड़ाधा भागे बढ़ाता है, किन्तु समय पाकर वह चारों खाने चित्त गिरता है । उसका मन मर जाता है, उसके खेदका कुछ ठिकाना नहीं रहता, और वह मसमर्थ होजाता है।
दशानन पर्वतके असह्य भारको अपने सिरपर नहीं रख सका वह जो से चिल्लाने लगा। बड़ा भारी कोलाहरू उपस्थित होगया। रोते२ उसका गला भर भाया, बालिदेव दशाननके मार्तनादको प्राण नहीं कर सके, उनका हृदय दयासे भाई होगया । उन्होंने उसी क्षण अपने वैरके अंगूठेको दीका किया, दशानन पर्वतके नीचेसे अपना जीवन सुरक्षित लेकर निकल भाया। सी समय ऋषीराजके तीव तपश्चरणसे उसन हुए बड़ तेजके प्रभावसे देशममोंके नासन भी कंपायमान हो गए।