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जैन युग-निर्माता ।
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बुझाना है तो भाइए हम और आप निपट लें।" यह कहकर वीर जम्बुकुमार ताल ठोककर रत्नचूलके सामने खड़ा होगया ।
रत्नचूलने अपने सैनिकों को जम्बुकुमार पर आक्रमण करनेकी माज्ञा दी । सैनिक अ ज्ञा पालन कानेवाले ही थे कि पलक मरते ही बुकुमार रत्नचूनसे शि गए । सैनिक देखते ही रह गए और दोनोंमें भयंकर युद्ध होने लगा, यह युद्ध इतना शीघ्र हुआ जिसकी क्सिोको संभावना नहीं थी । जंबुकुमाग्ने अपने तीव्र शस्त्र के प्रहारसे ही रत्नचूलको घसायी कर दिया। सैनिकों ने देखा, रत्नचूल अब जंबुकुमा के बंधन में पा चुका है।
___ रत्नचूलके बंधन युक्त होते ही मैनिकोंने शस्त्र डाल दिए । जंबुकुमार विजयके माथ साथ गजा मृगांक और विलासवतीको भी अपने साथ राजगृह ले गए। वहां बड़े उत्सबके साथ राजा बिचमारका विलासवती से, पाणिगृहण हुआ। इस विजयसे वीर जंबुकुमारका गौरव चौगुना बढ़ गया।
सुधर्माचार्य उस दिन राजगृहक उद्यानमें आए थे। उनका कल्याणकारी उपदेश चल रहा था। जंबुकुमारके विक्त हृदयको उनका उपदेश चुभा । धर्मके दृढ़ प्रचारक बननकी उनकी भावना जागृत हो उठी। युद्ध क्षेत्रका विजयी वीर, भात्म विजयी बननेको तड़प उठा । भाचार्यसे उसने साधु दीक्षा चाही।।
साधु जानते थे जंबुकुमारके सन्तस्तलको, लेकिन अभी थोड़ा समय उसे वे और देना चाहते थे अंदर सोई हुई गुप्त लालसाको