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________________ MANASONIRNOWHATNAMANANDraveena.vwaNAMANANINMENMARWMos शीलवती सुदर्शन । [२५३ सुदर्शनके यह बालक हैं, सुनकर कपिला एकदम सिहर उठी, अनायास उसके मुंइसे निकल गया-" सुदर्शनके बालक ! मुर्शन तो पुरुषत्व हीन है।" रानीने कपिलाके हृदयकी यह सिहरन देखी, उसके कहे शब्दोंको सुना। यह सब उसे अत्यंत रहस्यजनक प्रतीत हुमा । उसने कपिलासे यह सब जानना चाह।। कपिछा टत्ते में कर कह तो चुकी थी पान्तु उसे अपनी गातार बढी लज्जा आई, वह कुछ समयको मौन रह गई। फिर बोली"महारानी जी कुछ नहीं, मैंने सुदर्शनके संबंध किसीसे यह सुना था।" उसके बोलने के ढं। और लज्जामाल मुंहको देखकर सनीको उसके कहनेपा मंदेह होगया. 46 बोली- नहीं कपिला, तू अपने हृदयको स्पष्ट पातको मुझमें छुरा रही है, तू सत्य कह. तूने यह कैसे जाना है ? " कापला अपने हृदयकी बातको छपा नहीं सकी, उसने अपने ऊपर वीती हुई सारी घटना रानीको कह सुनाई। कपियकी कहानी सुनकर गनीके हृदयमें एक विचित्र आकर्षण हुका । करुणः और हास्यकी घागएं तीव्र गतिसं बहने लगी। अपने हृदयमें सब भावनाएं लेकर वह वसंतोत्सवसे लौटी। रानी अभयाका हृदय भान अत्यंत चंचल हो उठा था। कितने ही प्रयत्नों द्वारा दबाये जानेपर भी अब उसके हृदयकी चंचलता नहीं रुक सकी तब उसने अपने हृदयकी हलचकको अपनी पाय पंडिता पर प्रकट किया।
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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