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२५२] जैन युग-निर्माता। मेरी बातपर विश्वास नहीं होता! तुम्हारी समझमें क्या यह नही माता कि जिस रमणीकी दिव्य रूप राशिके उन्मत्त लीला विलासने तीक्ष्ण और कुटिल कटाक्ष पातमें स्निग्धता और तृप्तिकर स्पर्शने देवताओं के हृदय भी विवलित कर दिए। ब्रह्माके व्रतको भंग कर दिया, विष्णुको अपना दास व I लिया और महर्षियोंकी तपस्याको नष्ट कर डाला उसका प्रभाव मेरे जैसे साधारण व्यक्तिपर नहीं पड़ता। मेरे घुमन्वहीन होने के लिए इससे अधिक प्रमाण और क्या चाहिए।"
मुदर्शनकी बातसे कपिला अत्यंत निराश हो चुकी थी। वह पश्चात्तापके स्वामें बोली- ओह ! तब मैंने व्यर्थ ही अपने हृदयको कलंकित किया ।"
सुदर्शन यह सुनने के लिए वहां खड़ा नहीं रहा । वह शीघ्र ही कपिलाके घास बाहिर निकल गया।
बसंत ऋतु माई। वसंतोत्सव मनाने के लिए नगर निवासी उन्मत्त होकर उपवनकी ओर जाने लगे। सुदर्शन भी अपनी पत्नी और पुत्रोंके साथ वसंतोत्सव मनाने गया था। महारानी ममया भी यह उत्सव मनाने गई थी। उनके साथ विप्र पनी कपिला और उसकी मन्य सखियां भी थीं।
महारानी अमयाने सदर्शनके सुन्दर पुत्रोंको देख कर मनी दासीसे पछा-" चपला, क्या तू बता सकेगी यह सक और पुष्ट बालक किमके हैं।"
चपकाने कहा-महारानी जी ! यह सुन्दर बालक नगरके प्रसिद्ध पनिक हो सर्शनके है।