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________________ पवित्र हृदय बारुदस । | २२१ धन कमाने के लिए अपने कुछ साथियों के साथ वह रत्नद्वीपको चल दिया । मार्ग में जाते हुए उसे तथा उसके साथियों को लुटेरों ने लूट लिया था। चारुदत्त के पास धन नहीं था इसलिए वे उसे अपने साथ पकड़ कर ले गए । वे उसका देवो पर बलिदान कर देना चाहते थे, लेकिन उनके सरदारको उसकी युवावस्था और सुन्दरता पर तरस आ गया, उन्होंने उसे एक भयानक जंगलमें छोड़ दिया । जंगलमें उसे एक जटाजूट तपस्वी के दर्शन हुए | तपस्वीने उसे अपनी मोहक बातोंके जाल में फंमाना प्रारम्भ किया । बइ बोलायुवक ! मालूम पड़ता है, तुम घनकी लालसा से ही जंगलों में पर्यटन कर रहे हो, मैं तुम्हें इस चिंनासे अभी मुक्त किए देता हूं देखो ! इस जंगलमें एक बावड़ी है जिसमें रसायन भरा हुआ है 1 उस रसायनको प्राप्त कर लेनेपर तुम चाहे जितना स्वर्ण उपसे तैयार कर सकते हो, लेकिन तुम्हें इसके लिए थोड़ा साहस और दृढ़ता से कार्य लेना होगा, मैं तुम्हें एक रस्सेसे बांधकर उस वापी में छोड़ दूंगा और तुम्हें एक तुंबी दूंगा, पहले एक तूंबी रसायन तुम्हें मुझे लाकर देना होगी इसके बाद तो वैभवका दरवाजा तुम्हारे लिये खुला दी है, तुम चाहे जितना रसायन अपने लिए ला सकते हो 1 द्रव्योपासक सरल - हृदय चारुदत्त तपस्वीकी मीठी बातों में आ गया, उसने ब्यानी स्वीकृति दे दी । तापसीके अब पौवारह थे । वह बारुदको वापीके निकट ले गया और उसके गले में रस्सी बांधकर हाथमें एक तंबी देकर उसे वापीमें उतार दिया | बाफी बहुत गहरी थी, उसमें काफी अंधेरा भी था, नीचे 66
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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