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जैन कुन-निर्माता।
कलिंगसेना मधिक समय तक यह सब न देख सकी, एक रात्रिको जब चारुदत्त, बसंतसेनाके. साथ गाढ़ निद्रामें सो रहा था, उसने अपने सेवकों के द्वारा उसे ठयाकर घर भेज दिया ।
चारुदत्तके उन्मादका नशा आज प्रथम दिन ही टूटा था, भाज उसकी पत्नीने उसके नेत्रों में एक अनोखी ज्योति देखी थीं। उसने मी नेत्र भरकर भाज अग्नी पत्नी के सौन्दर्यका अवलोकन किया था। दोनोंके नेत्र एक विचित्र द्विविधासे भरे हुए थे।
च रूदत्त के हृदय १५ वसंतसेनाके प्रेमका आकर्षण अभी था लेकिन उसको निधनताने उसे लजित कर दिया था। माज अपना अपार द्रव्य खोकर उमने द्रव्य के मूल्यको समझा था ।
दुखी माता और पत्नी ने निर्धनतासे संतापित चारुदत्त के हृदयको म्नेहाससे मिंचन किया । उसे भानी कंगाली स्वट की, द्रव्योपार्जनकी चिंताने उसके सोये मनको भाव जमा दिया था।
पत्नी के पास छिपे हुए गुप्त धनको लेकर उसने व्यापारकी दिशामें प्रवेश किया । उमने द्रव्य कमानेमें अपना मन और शरीर दोनोंको व्यस्त कर लिया था, लेकिन दुर्भाग्यने उसका पीडा नहीं छोड़ा था। लाभकी इच्छासे उसने व्यापार किया , लेकिन उसमें वह अपना बचा हुआ सारा धन खो बैठा।
चारुदत्त द्रव्य कमानेके लिये स हो गया था। अपने पौस और साहसकी बाजी पनके लिये लमा देना भता था। बने जीवनको भी वह पक्के पीछे खरे बस देना , उसने ऐसा किया भी।