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जन युग-निर्माता।
का उसने ज्योंही तुंबीको वापी में रस भरने के लिए डाला उसे किसी व्यक्तिके कराहने की आवाज सुनाई दी, भयसे उसके होश गुम होगए। वापी में पड़े व्यक्तने बड़े धैयसे हाथ हिलाया, वह धीमे स्वरमें बोलाअभागे पथिक ! तू कौन है. तेरा दुर्भाग्य तुझे यहां खींचकर लाया है। मैं तेरा हितचिंतक हूं, तूंची ले जानेके पहिले तू मेरी बात सुनले, इससे ते करप ण होगा।
चारुदत्त वापी में पड़े व्यक्ति की बात ध्यानसे मुनने लगा । वह बोला-यह तम्बी बढ़ा दुष्ट है । इसने मुझे तेरी तरह रसायनका लोम देकर इस वापी में पटका है । एकवार मैंने उसकी तूंवी भाकर उसे दे दी. लेकिन दुमरीवार जब मैं रसायन लेकर रसेसे ऊपर चढ़ रहा था इस निदयने रम्सको बीच में से काट दिया जिससे मैं इस वापी में पड़ा सड़कर अपने जीवनकी घड़ियां व्यतीत कर रहा हूं. अब मेरी मृत्युमें कुछ समय ही शेष है इसलिए मैं तुझे चेतावनी देना हूं तु इस दुष्ट के जालसं शीघ्र निकलने का प्रयत्न कर ।
चारुदत्तकी बुद्धि कृन कर गई थी, वह अपने छुटकारेके लिए कुछ भी नहीं सोच पाता था। उम्ने करुण होकर अपरिचित व्यक्तिसे ही इस मृत्यु-मुग्वसे निकलने का मार्ग पूछा
अपरिचिन ने कहा- चारुदत्त ! तुझे अब यह करना होगा, तू इस तुम्बीको लेकर उस दुष्ट तपम्वोको दे दे और दृ-री बार जब वह तेरे पकानेको सम्सी डालेगा तब उसमें इस बड़े पत्याको जो मैं तुझे दे रहा हूं बांध देना और तू इस वापीकी उस सीढ़ी पर जो कुछ र दिख रही है उस पर बैठ जाना, तुझे बंधा देखकर वह दुष्ट