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उसी समय से माता की बुद्धि सुनिश्चित होगई थी; श्रतः श्रीभगवान् का नाम सुमति हुआ । निष्पङ्कतामङ्गीकृत्य पद्मस्येव प्रभाऽस्यपद्मप्रभ. यद्वा पद्मशयेन दोहदो मातुर्देवतया पूरित इति, पद्मवर्णश्च भगवानिति वा पद्मप्रभः विषय-वासना रूपी कीचड़ से रहित और पद्म के समान प्रभा है जिस की उसी का नाम पद्मप्रभ है । तथा पद्मशय्या में शयन करने का दोहद उत्पन्न हो गया था वह देवता द्वारा पूर्ण कियागया तथा पद्मकमल के समान जिन के शरीर का वर्ण था इसी से श्रीभगवान् का नाम पद्मप्रभ हुआ शोभनौ पार्श्वविस्य सुपार्श्व यद्वा गर्भस्थे भगवति जनन्यपि सुपार्श्वभूदिति सुपार्श्व शोभनीय दोनों तरफ है जिन के वह सुपार्श्व है अथवा जय श्रीभगवान् गर्भ में थे, तब उसी समय से माता के दोनों तरफ शोभनीय हो गए थे अतः श्रीभगवान् का नाम सुपार्श्व हुआ । चन्द्रस्येव प्रभा ज्योत्स्ना सौम्य - लेश्यावीशेपोऽस्य चन्द्रप्रभ तथा गर्भस्थे देव्याः चन्द्रपानदोहदोऽभूदिति चन्द्रप्रभः चन्द्रमा के समान है सौम्यलेश्या जिन की वही चंद्रप्रभ है तथा जब श्रीभगवान् गर्भ में आए थे तब माता को चन्द्रपान करने का दोहद उत्पन्न हुआ था । अतएव श्रीभगवान् का नाम चन्द्रप्रभ हुआ । शोभना विधिर्विधानमस्य सुविधिर्यद्वा गर्भस्थ भगवति जनन्यऽप्येवमिति सुविधिः सुन्दर है विधि विधान जिस का वह सुविधि तथा जय श्री भगवान् गर्भ में थे तब माता अत्यन्त सुन्दर विधि विधान करने वाली हो गई थी, अतः श्रीभगवान् का नाम सुविधि रक्खा गया । सकलसत्वसंतापहरणात् शीतल. तथा गर्भस्थे भगवति पितुः पूर्वोत्पन्नाचिकित्स्यपित्तदाहो जननीकरस्पर्शादुपशान्त. इति शीतल. सकल जीवों का सन्ताप हरने से शीतल तथा जब श्रीभगवान् गर्भ में स्थित थे, तब श्रीभगवान् के पिता को पित्तदाह का रोग था, जो वैद्यों द्वारा भी शान्त न हो सका था, तब श्रीभगवान् की माता ने राजा के शरीर को स्पर्श किया, तब रोग शान्त हो गया। इस प्रकार गर्भस्थ जीव का माहात्म्य जान कर श्रीभगवान् का नाम शीतल रक्खा गया है | श्रेयासावंसावस्य श्रेयांसः पृषोदरादित्वात् यथा गर्भस्थेऽस्मिन् केनाप्यनाक्रान्तपूर्वदेवताधिष्ठितशय्या जनन्याक्रान्तेति श्रेयो जातमिति श्रेयास । सर्व जगत्-वासी जीवों के हित करने से श्रीभगवान् का नाम श्रेयांस तथा जब श्रीभगवान् गर्भावास में थे, तब श्री भगवत् के पिता के घर में एक देवाधिष्ठित शय्या थी. उस पर कोई भी बैठ नहीं सकता था यदि बैठता था तो उसको असमाधि उत्पन्न हो जाती थी; किन्तु गर्भ के प्रभाव से रानी जी को उस शय्या पर शयन करने का दोहद उत्पन्न हुआ, तब वह उस शय्या पर शयन कर गई । तब देवता ने कोई भी उपसर्ग नहीं किया श्रतः श्रेयांस नाम स्थापित हुआ । वसुपूज्यनृपतेरयं वासुपूज्यः यद्वा गर्भस्थेऽस्मिन् वसु हिरण्यं तेन वासवो राजकुलं पूजितवानिति वसवो देवविशेषास्तेषां पूज्यो वा वसुपूज्य. प्रज्ञाद्यणि वासुपूज्यः जो देवतों द्वारा पूजनीय है वही वासुपूज्य है तथा वसुपूज्य राजा का जो पुत्र है, उसी का नाम वासुपूज्य है तथा जब श्रीभगवान् गर्भ
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