________________
( ५४ ) निम्नलिखितानुसार हैं । जैसे कि-पद्मनाभ १, शूरदेव २, सुपार्श्वक ३. स्वयंप्रभ ४, सर्वानुभूति ५, देवश्रुत ६, उदय ७, पेढाल ८ पोहिल , शतकीर्ति १०. सुव्रत ११, अमम १२, निष्कषाय १३, निष्पुलाक १४. निर्मम १५, चित्रगुप्त १६, समाधि १७, संवर १८, यशोधर १६, विजय २०,मल्ल २१, देव २२,अनन्तवीर्य २३, और भद्रकृत् २४ । अभिधान चिन्तामणि हेमकोष में व्युत्पत्ति सहित उक्त नामों की व्याख्या की गई है। वहां से देख लेनी चाहिए।
वर्तमान काल (इस समय) में जो श्रवसप्पिणी काल वर्त रहा है, उसमें भी चतुर्विशति तीर्थंकर देव हुए हैं, उनके शुभ नाम अभिधानचिन्तामणि से व्युत्पत्ति सहित लिखता हूं। जैसे कि ऋषति गच्छति परमपदमिति 'ऋषिषि लुसिभ्यः कित" ( उणा. ३३१) इत्यमै ऋषभः यद्वा ऊर्वोवृषभलाञ्छनमभूद्भगवतो, जनन्या च चतुर्दशाना स्वप्नानामादावृषभो दृष्टस्तेन ऋषभः १---जो परम पद के विषय जाता है. उसे ही ऋषभ कहते हैं सो यह अर्थ तो सर्व जिनेवश्र देवों के विषय संघटित होजाता है। परंच श्रीभगवान् के दोनों उरुओं में वृषभ का लक्षण था, तथा श्रीभगवत् की माता ने चतुर्दश स्वप्नों के देखे जाने पर प्रथम स्वप्न वृपम का ही देखाथा, इसीलिये श्रीभगवान् का शुभनाम ऋषभदेव भगवान् स्थापन किया गया। परिषहादिभिर्न जितः इति अजितः यद्वा गर्भस्थे अस्मिन्यूते राज्ञा जननी न जितेत्यजित: जो परिषहादि से न जीता गया, उसी का नाम अजित है, अर्थात् २२ परीषह, चार कषाय ८ मद और ४ प्रकार के उपसर्ग ये सव श्रीभगवान् को जीत न सके: इसलिये श्रीभगवान् का शुभ नाम अजित हुश्रा; किन्तु यह सर्व जिनेश्वर देवों में व्यापक हो जाता है । अतएव विशेष अर्थ यह भी है कि-जव श्रीभगवान् गर्भावास में विराजमान थे उस समय राजा और रानी चित्त विनोद के लिये एक प्रकार का द्यूत (सारपाशादि) खेलते थे, तब राजा रानी को जीत न सका, इसलिये श्री भगवान् का नाम अजितनाथ रक्खा गया। शं सुखं भवत्यस्मिन् स्तुते शंभव यद्वागर्भगतेऽप्यस्मिन्नभ्यधिकसस्यसंभवात् सम्भवोऽपि-श नाम सुख का वाचक है,सो जिस के करने से सुखकी प्राप्ति हो उसे ही शंभव कहते हैं। तथा जिस समय श्रीभगवान् गर्भ में आए थे, उस समय पृथ्वी पर धान्यों की अत्यन्त उत्पत्ति हुई थी,अतःश्रीभगवान् का नाम संभवनाथ हुआ। अभिनन्द्यते देवेन्द्रादिभिरित्यभिनन्दन भुज्यादित्वादनटः यद्वा गर्भात्प्रमृत्यैव अभीक्ष्णं शक्रेणाभिनन्दनादाभिनंदनः जिस की इन्द्रादि द्वारा स्तुति की गयी है, उसी का नाम अभिनन्दन है तथा जब से श्रीभगवान् गर्भ में आए थे, उसी दिन से पुनः २ शक्रेन्द्र द्वारा स्तुति की गई; अतः श्रीभगवान् का नाम अभिनन्दन है। शोभनामतिरस्य सुमति. यद्वा गर्भस्थ जनन्या सुनिश्चिता मतिरभूदिति सुमतिः सुन्दर है बुद्धि जिस की उसी का नाम है सुमति, तथा जब से श्रीभगवान् गर्भ में आए थे,