________________
वास में थे, तब हिरण्य वां सुवर्ण द्वारा वैश्रवण देवता ने घर को पूर्ण भर दिया. इसलिये श्रीभगवान् का नाम वासुपूज्य हुआ तथा वासव नामक इन्द्रों द्वारा जो पूजित है उसी का नाम वासुपूज्य है । विगतो मलोऽस्य विमलनानादियोगाद्वा विमल यद्वा गर्भस्थे मातुर्मतिस्तनुश्चविमला जातैति विमल दूर हो गया है पाठ कर्मरूपी मल जिन का तथा निर्मल ज्ञानादि के योग से विमल नाम हुआ, तथा जव श्रीभगवान् गर्भ में थे तब भगवान की माता की मति-तथा माता का शरीर निर्मल हो गया था. इस लिये श्रीभगवान् का नाम विमलनाथ स्थापन किया गया न विद्यते गुणानामन्तोऽस्य अतः अनंतजिदेकर्देशों वा अनंतभीमा भीमसेन इति न्यायात राचासो तीर्थकृच्च अनंततीर्थकृत् जिन के गुणों का अन्त नहीं होता, उन्हें अनंत कहते हैं, तथा अनंत कर्मों के अंश जीतने से अनंत मशान जो उत्पन्न हो गया है, इसी कारण अनंत कहते हैं। दुर्गतौ प्रपतन्तं सत्वसंघात धारयति धर्म., तथा गर्भस्य जननी दानादिधर्मपरा जातैति धर्मः दुर्गति में गिरते हुए प्राणियों को जो धारण करता है, उसे ही धर्म कहते हैं तथा जब श्री भगवान् गर्भावास में थे तब माता की रुचि दानादि धर्मों में विशेष हो गई थी। श्रतएव श्रीभगवान् का नाम धर्मनाथ रक्खा गया। शातियागात् तदात्मकत्वात् तत्कर्तृकत्वाच्चायं शाति' तथा गर्भस्थे पूर्वोत्पन्नाऽशिवशातिरभूत् इति शातिः । शांति के योग से वा शांति रूप होने से तथा शांति करने से शांति तथा जव श्री भगवान गर्भावास में थे, तव देश में जो पूर्व-उत्पन्न अशिव (रोग) था उस की शांति होगई थी, इसीलिये शांतिनाथ नाम रक्खा गया । कु. पृथ्वी तस्या स्थितवान् इति कुंथु पृषोदरादित्वात् तथा गर्भस्थे भगवति जननी रत्नानां कुन्थुरोशिं दृष्ट्वतीति कुथुः पृथ्वी पर ठहरने से कुंथुनाथ तथा जव श्रीभगवान् गर्भावास में थे, तव माता ने रत्नमय कुंथुओं की राशि को देखा था, इसी कारण कुंथुनाथ नाम स्थापन किया गया। सर्वोन्नामसत्वकुले यः उपजायते तस्याभिवृद्धये वृद्धैरसावर .उदाहृत' इति वचनादरः तथा गर्भस्थे भगवति जनन्या स्वप्ने सर्वरत्नमयोऽरो दृष्ट इत्यरः सव से उत्तम सहासात्विक कुल में जो उत्पन्न होता है तथा जो कुल की वृद्धि करने वाला होता है उस को वृद्ध पुरुष प्रधान अर कहते हैं। तथा जब श्रीभगवान गर्भावास में थे, तब माता ने स्वप्नावस्था में सर्वरत्नमय अर ( करवत) देखा था, इसी कारण से श्रीभगवान् का शुभ नाम अरनाथ रक्खा गया। परीधहादि मल्लजयान्निस्तान्मल्लि तथा गर्भस्थे भगवति मातुः सुरभिकुसुममाल्यशयनीय दोहदो देवतया पूरितइति मल्लि. ! परीपहादिमल्लों के जीतने से मल्लि तथा जव,श्रीभगवान् गावास में थे तव माता को सुगंध वाले पुष्पों की माला की शय्या में शयन करने का दोहद उत्पन्न हुआ था, सो वह दोहद देवता द्वारा पूरा किया गया इस कारण से श्रीभगवान् का नाम मल्लिनाथ रक्खा गया। मन्यते जगतस्त्रिकालावस्था