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( २६८ ) होता है । सो आत्मा का परिणाम उक्त पांचों चारित्रों में हो जाता है। इसलिये
आत्मा को चारित्र परिणाम वाला कहा जाता है। साथ में इस वात का भी ध्यान रहे कि जिस समय जीव चारित्र परिणाम वाला होता है तव ही जीव आत्मप्रदेशों से कर्मों की वर्गणाओं को दूर करने में समर्थ होता है।
अव शास्त्रकार इस के अनन्तरवेद परिणाम विषय कहते हैं, यथाचः
वेद परिणामेणं भंते कतिविधे प. ? गोयमा ! तिविहे पएणत्ते तंजहाइत्थीवेद परिणामे पुरिसवेद परिणामे णपुंसग वेदपरिणामे ।
भावार्थ- हे भगवन् ! वेद परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम!.वेद परिणाम तीन प्रकार से वर्णन किया गया है जैसे कि-स्त्री वेद परिणाम, पुरुष वेद परिणाम और नपुंसक वेद परिणाम । इसका सारांश यह है कि-जव जीव विकार युक्त होता है तव उसका परिणाम उक्त तीन प्रकार से माना जाता है।
जव आत्मा कामाग्नि से युक्त होता है तव उस का परिणाम स्त्री, पुरुष और नपुंसक रूप से माना जाता है । अतएव इस प्रकार शास्त्रकर्ता ने जीव परिणाम दश प्रकार से वर्णन किया है अर्थात् उक्त दश अंकों में जीव का ही परिणमन होना देखा जाता है।
__ अव इस विषय वर्णन करते हैं कि-नैरयिकादि जीवों में कौन २ सा परिणाम पाया जाता है जैसेकि
नेरईयागतिपरिणामेणं निरयगतीया, इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया, कसायपरिणामेणं कोहकसाई जाव लोभ कसाईवि, लेस्सापरिणामेणं कण्हलेसावि नीललेसावि काउलेसावि जोगपरिणामेणं मणजोगीवि, वयणजोगीवि, कायजोगीवि, उवोगपरिणामणं सागारोवउत्तावि अणागारोवउत्तावि, णाणपरिणामेणं आभिणियोहियणाणीवि सुयणाणीवि ओहिणाणीवि अणाणपरिणामेणं मइ अणाणीवि सुयप्रणाणीवि विभंगनाणीवि, दसणपरिणामेणं सम्मदिठीवि मिच्छादिहीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि, चरित्तपरिणामेणं, नो चरित्ती नो चरित्ताचरित्ती अचरित्ती, वेदपरिणामेणं नोइथिवेदगा नोपुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा।
भावार्थ-जब हम नरक गति में गए हुए जीवों पर विचार करते हैं तब उक्त दश परिणामों में से इस प्रकार परिणत हुए वे जीव माने जाते हैं जैसेकि