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( २६७ ) - भावार्थ हे भगवन् ! चरित्रपरिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! चारित्र परिणाम पांच प्रकार से वर्णन किया गया है जैसेकि-सामायिक चरित्र परिणाम, छेदोपस्थापनीय चरित्र परिणाम, परिहार विशुद्धिक चरित्रपरिणाम, सूक्ष्म सांपरायिक चारित्रपरिणाम और यथाख्यात चारित्र परिणाम । शास्त्रों में चारित्र शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है कि जिस से आत्मा के ऊपर से 'चय' कर्मों का उपचय दूर हो जावे उसका नाम चारित्र है । यद्यपि शास्त्रों में उक्ल चारित्रों की विस्तार पूर्वक व्याख्या लिखी हुई है तथापि उक्त चारित्रों के नामों का मूलार्थ इस प्रकार वर्णन किया गया है जैसेकि
१सामायिक चारित्र-जिसके करने से आत्मा में समता भाव की प्राप्ति'हो और सम्यक्तया योगों का निरोध किया जावे उस का नाम सामायिक चारित्र है।
२ छेदोपस्थापनीयचारित्र-पूर्व पर्याय को छेद कर फिर पांच महाव्रत रूप पर्याय को धारण करना उस का नाम छेदोपस्थापनीय चारित्र है।
३ परिहारविशुद्धिक चारित्र--जिसके करने से पूर्व प्रायश्चित्तों से आत्म-विशुद्धि कर आत्म-कल्याण किया जाय उस कानाम परिहार विशुद्धिक चारित्र है । सम्प्रदाय में यह बात चली आती है कि नव साधु इस चारित्र को धारण कर गच्छ से वाहिर हो कर २८ मास पर्यन्त तप करते हैं जैसेकिप्रथम चार साधु छः मास पर्यन्त तप करने लग जाते हैं और चार साधु उन की वैयावृत्यादि करते हैं। एक साधु व्याख्यानादि क्रियाओं में लगा रहता है । जब वे तपकर्म कर चुकें तव सेवा करने वाले चारों साधु तप करने लग जाते हैं और वे चारों उनकी सेवा करते रहते है, परन्तु व्याख्यानादि क्रियाएँ वहीं साधु करता रहता है । जव चे चारों साधु पद मास पर्यन्त तप कर चुके तव वह व्याख्यानादि क्रियाएँ करने वाला साधु पटु मास पर्यन्त तप करता है और उन श्राठा साधुओं में एक साधु व्याख्यानादि क्रियाओं में प्रवृत्त हो जाता है शेप सात साधु उसकी सेवा करने लगते हैं । इस क्रम से ये नव साधु १८ मास पर्यन्त उक्ल चारित्र की आराधना कर फिर गच्छ में प्राजाते है ।
सूक्ष्मसांपसयचारित्र-जिस चारित्र में सूक्ष्म लोभ का अंश रहजावे । यह चारित्र दश गुणस्थानवी जीवों को होता है।
___ यथाख्यातचारित्र-जिस प्रकार क्रियाओं का वर्णन करे उसी प्रकार क्रियाओं का करने वाला यथाख्यातचारित्र कहा जाता है । यह चारित्र सरागी और वीतरागी दोनों प्रकार के साधुओं को होता है अर्थात् ११वें, १२ च, १३ चें, और १४ चे गुणस्थानवी जीवों को यथाख्यात चारित्र