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________________ ( २८५ ) साथ (पुद्गल कर्मों का ) सम्बन्ध है तव तक ही आत्मा में कर्म आते जाते रहते हैं। क्योंकि-पुद्गल में परस्पर आकर्षण शक्ति विद्यमान है। पुद्गल को पुद्गल आकर्षण करता है। अतएव सिद्ध हुआ कि-दोनों नयों का मानना युक्तियुक्त है क्योंकि-यदि इस प्रकार से न माना जायगा तव अत्मा के साथ कर्मों का तादात्म्य सम्बन्ध सिद्ध हो जायगा जिसे फिर इस आत्मा का निर्वाणपद प्राप्त करना असंभव सिद्ध होगा। इसलिये संवर द्वारा नूतन कर्मों के पाश्रव का निरोध कर प्राचीन कमों का ध्यानतप द्वारा क्षय करना चाहिए। यद्यपि जैनसूत्रों तथा कर्मग्रथों में अनेक स्थलों पर कर्मों की विस्तृत व्याख्या की गई है तथापि इस स्थान पर केवल दिग्दर्शन के लिये श्राठों मूल प्रकृतियों के नामोल्लेख किये गए हैं ताकि जिज्ञासु जनों को इस विषय मे अधिक रुचि उत्पन्न हो । यत् किंचित् मात्र इस स्थान पर लिखने का प्रयोजन इतना ही था कि-बद्ध को मोक्षपद होसकता है नतु मुक्त को। संसारी जीव उक्त आठों प्रकार के कर्मों से लिप्त हैं। जब वे उक्त कर्मों के बंधनो से विमुक्त होजायेंगेतब ही मोक्षपद प्राप्त कर सकेंगे। श्रतएव प्रत्येक आस्तिक जिज्ञासु आत्मा को योग्य है कि-वह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग् चारित्र द्वारा कमों से रहित होकर अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंतसुख और अनंत बलवीर्य को निज आत्मा में विकास कर उस में फिर रमण करे । निर्वाण पद प्राप्त होने पर निश्चय नय के अनुसार आत्मा ही देव, आत्मा ही गुरु और श्रात्मा ही धर्म है। ___ इति श्रीजेनतत्त्वकालकाविकासे मोक्षस्वरूपवर्णनात्मिका अष्टमी कलिका समाप्ता ।। नवमी कलिका (जीव परिणाम विषय) इस द्रव्यात्मक जगत् में मुख्यतया दो ही तत्त्व प्रति पादन किये गए हैं। जार्व और अजीव । इन्ही दोनों तत्त्वों के अनंत भेद हो जाने से जगत् में नाना प्रकार की विचित्रता दिखाई पड़ती है। कारण कि-"उत्पादव्ययध्रौव्यसत्" द्रव्य का लक्षण जैनशास्त्रों ने उत्पाद व्यय और ध्रौव्य रूप स्वीकार किया है। इस कथन से द्रव्यास्तिक नय और पर्यायास्तिक नय भी सिद्ध किये गए हैं। द्रव्यास्तिक नय के आश्रित सर्व द्रव्य ध्रौव्य पद में रहता है परन्तु उत्पाद और व्यय के देखने से सर्व द्रव्य पर्यायास्तिक नय के आश्रित दीख पड़ता है। साथ ही इस बात का भी प्रकाश कर देना उचित प्रतीत
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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