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( २५१ ) भावार्थ-कर्मो से ब्राह्मण होता है जैसेकि-"अध्यापनं, याजनं प्रतिग्रहो ब्राह्मणानामेव" अध्यापनवृत्ति, याजनकर्म और प्रतिग्रह कर्म अर्थात् पढ़ाना, यज्ञ करना, दान लेना, इत्यादि कर्म ब्राह्मणों के होते हैं । इस का सारांश इतना ही है कि-पूजा के लिये शान्ति के उपायों का चिन्तन करना तथा संतोष वृत्ति द्वारा शान्त रहना, यही कर्म ब्राह्मणों के प्रतिपादन किये गये हैं, किन्तु "भूतसंरक्षणं शस्त्राजीवनं सत्पुरुषोपकारी दीनोद्धरणं रणेऽपलायनं चेति क्षत्रियाणाम्।' प्राणियों की रक्षा, शस्त्रद्वारा आजीवन व्यतीत करना, सत्पुरुषों पर उपकार करना, दीनों का उद्धार करना अर्थात् उनके निर्वाह के लिये कार्यक्षेत्र नियत कर देना संग्राम से नभागना इत्यादि कार्य क्षत्रियों के होते हैं। "वातीजीवनमावशिकपूजनं सत्रप्रपापुण्यारामदयादानादिनिर्मापणं च विशाम्” कृषिकर्म
और पशुओं का पालना, आर्जव भाव रखना, पुण्यादि के वास्ते अन्न दानादि यथा शक्ति करना आरामादि की रचना इत्यादि ये सब कर्म वैश्यों के होते हैं। "त्रिवर्णोपजीवनं कारुकुशीलवकर्मपुण्यपुटवाहनं शूद्राणाम्" तीनों वर्णों की सेवा करनी, नर्तकादि कर्म, भिक्षुओं का उपसेवन इत्यादि कार्य शूद्रों के होत हैं।
जाति परिवर्तनशील नहीं होती, किन्तु कर्मों के आश्रित होने से वर्ण परिवर्तनशील माना जा सकता है । क्योंकि-जाति की प्रधानता जन्म से मानी जाती है और वर्ण की प्रधानता कर्म से मानी जाती है जैसे किएकेंद्रियादि चतुरिन्द्रिय जाति वाले जीव मोक्ष गमन नहीं कर सकते। केवल पंचेन्द्रिय मनुष्यजाति ही मोक्ष प्राप्त करने के योग्य है।।
अपरंच वर्ण की कोई व्यवस्था नहीं वांधी गई है । जैसे कि-अमुक वर्ण वाला ही मोक्ष जा सकता है अन्य नहीं। क्योंकि-मोक्ष तो केवल 'सम्यग्दर्शनजानचारित्राणि मोक्षमार्ग " सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र के ही
आश्रित है, न तु वर्ण व्यवस्था के आश्रित । यदि कोई कहे कि-शास्त्रों मे " जाइसंपन्ने कुलसंपन्ने " इत्यादि पाठ आते है जिन का यह अर्थ है कि जातिसंपन्न अर्थात् माता का पक्ष निर्मल और पिता का पक्ष कुल संपन्न । तब इनका क्या अर्थ माना जायेगा ? इस का उत्तर यह है कि ये सब कथन व्यवहारनय के आश्रित होकर ही प्रतिपादन किये गये है। किन्तु निश्चय नय के मत में जो जीव सम्यग्दर्शनादि धारण कर लेता है वही मोक्ष गमन के योग्य होजाता है। __ आगे सम्यग्दर्शन में नव तत्त्व का सम्यग् प्रकार से विचार किया
१ ये सव सूत्र, ७-८ - और १० वो नीतिवाक्यामृत के नयी समुद्देश के हैं ।