________________
( २४२ )
एक और अनेक पक्ष से निश्चय ज्ञान कहने के वास्ते नय कहते हैं । सर्व द्रव्यों में अनेक स्वभाव हैं । वे एक वचन से कहे नहीं जाते अतएव परस्पर सात नय कहे जाते हैं । परन्तु मूलनय के दो भेद हैं जैसेकि - एक द्रव्यार्थिक नय १ द्वितीय पर्यायार्थिक नय २ | द्रव्यनय - उत्पाद व्यय पर्याय को गौण भाव से द्रव्य के गुण की सत्ता को ग्रहण करता है, परन्तु उस द्रव्यार्थिकनय के दश भेद प्रतिपादन किये गए हैं जैसेकि -
१ नित्य द्रव्यार्थिकनय- सर्व द्रव्य नित्य हैं, अगुरुलघु और वह क्षेत्र की अपेक्षा नहीं करता है । अतः वह मूल गुण को ग्रहण करता है । इसलिये वह एक द्रव्यार्थिकनय है ।
२ सत् द्रव्यार्थिकनय-- ज्ञानादि गुण के देखने से सर्व जीव एक समान हैं । इस से सिद्ध होता है जीव एक ही है, जो स्वद्रव्यादि को ग्रहण करता है वही सत् द्रव्यार्थिकनय है ।
३ वक्तव्यद्रव्यार्थिक—– जिस प्रकार " सत् द्रव्यलक्षणम्” इस में जो कहने योग्य है उसी को अंगीकार करना है उसी का नाम बक्तव्यद्रव्यार्थिक है । ४ अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय - जैसे अज्ञान युक्त आत्मा को अज्ञानी कहा जाता है।
1
५ श्रन्यद्रव्यार्थिकनय—सर्व द्रव्य गुण और पर्याय से युक्त हैं । ६ परमद्रव्यार्थिक – सर्व द्रव्यों की मूल सत्ता एक है ।
७ शुद्धद्रव्यार्थिक—सर्व जीवों के आठ रुचक प्रदेश सदा निर्मल रहते हैं । ८ सत्ताद्रव्यार्थिक - सर्व जीवों के श्रसंख्यात प्रदेश समान ही होते हैं । ६ परमभावग्राहिकद्रव्यार्थिक – गुण और गुणी द्रव्य एक होता है । जैसे आत्मा रूपी है।
१० गुणद्रव्यार्थिक- प्रत्येक द्रव्य स्वगुण से युक्त है ।
इस प्रकार द्रव्यार्थिकनय के दश भेद प्रतिपादन किये गए हैं, किन्तु व पर्यायार्थिक नय विषय कहते हैं-क्योंकि जो पर्याय को ग्रहण करता है उसी का नाम पर्यायार्थिक नय है; सो पर्यायार्थिक नय के ६ भेद वर्णन किये गए हैं। जैसे कि
१ द्रव्यपर्याय - भव्य पर्याय और सिद्ध पर्याय ।
२ द्रव्यपर्याय - आत्मीय प्रदेश समान ।
३ गुणपर्याय - जो एक गुण से अनेक गुण हों जैसे- धर्मादि द्रव्य के गुणों से अनेक जीव और पुद्गल द्रव्य को सहायता पहुंचती है ।
४ गुणव्यंजनपर्याय - जैसे- एक गुण के अनेक भेद सिद्ध हो जाते हैं । ५ स्वभावपर्याय- अगुरुलघु भाव ।