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________________ ( २४१ ) गुण अगुरुलघु अनादि अनंत है । अतीतकाल अनादि सान्त और वर्त्तमान काल सादि सान्त है, किन्तु अनागत काल सादि अनंत है। पुद्गल द्रव्य में द्रव्यत्व भाव से गलन मिलन धर्म अनादि अनंत है । क्षेत्र से परमाणु पुगल सादिसान्त है । काल से अगुरुलघु गुण अनादि अनंत है, किन्तु पुद्गल द्रव्य में उत्पाद और व्यय धर्म सादि सान्त है । स्वभाव गुण ४ अनादि अनन्त है । स्कन्ध देश प्रदेश श्रवगाहना मान सादि सान्त है । किन्तु वर्णादि पर्याय ४ सादि सान्त प्रतिपादन की गई हैं। इस प्रकार द्रव्यादि पदार्थों के चार भंग वर्णन किये गए हैं । अव पट् द्रव्य सम्बन्धी चार भंग दिखलाये जाते हैं । जब हम आकाश द्रव्य पर विचार करते हैं तव यह भली भांति सिद्ध होजाता है कि- जो अलोकाकाश है उसमें आकाश द्रव्य के विना अन्य कोई और द्रव्य नहीं है, किन्तु जो लोक का आकाश है उसमें पट् द्रव्य ही सदैव विद्यमान रहते हैं । वे कदापि आकाश द्रव्य से पृथक् नहीं होते । अतः वे अनादि अनंत हैं । श्राकाश क्षेत्र में जीवद्रव्य अनादि अनंत है, परन्तु संसारी जीव कर्म सहित लोक के आकाश-प्रदेशों के साथ उन का जो सम्बन्ध है वह सादि सान्त है । जो सिद्ध आत्माओं के साथ आकाश प्रदेशों का सम्बन्ध हो रहा है वह भी सादि अनंत है, अपितु लोक के आकाश के साथ जो पुद्गल द्रव्य का सम्वन्ध है वह अनादि अनंत है, किन्तु जो आकाश प्रदेश के साथ परमाणु पुद्गल का सम्बन्ध है, वह सादि सान्त है । इसी प्रकार धर्मास्तिकाय का सम्बन्ध सर्व जीवों के साथ जानना चाहिए | अपितु भव्य आत्माओं के साथ पुद्गल द्रव्य का सम्वन्ध अनादि अनन्त है । क्योंकि — अभव्यात्मा कदापि कर्मक्षय नही कर सकता है अपितु भव्य श्रात्मा कर्म क्षय कर जव मोक्षपद प्राप्त करेगा तव उसके साथ कम्र्मो का सम्बन्ध अनादि सान्त कहा जाता है । तथा निश्चय नय के मत से पट् द्रव्य स्वभाव परिणाम से परिणत हैं । इस करके ये परिणामी हैं अतः वे परिणाम सदा नित्य हैं । इस लिये पट् द्रव्य अनादि अनंत हैं । अपरं च जीव द्रव्य और पुद्गलद्रव्य का जो मिलने का परस्पर सम्बन्ध है, यह सम्बन्ध परिणामी है । सो वह परिणामिक भाव अभव्य जीव का अनादि अनंत है । भव्य जीव का अनादि सान्त है । किन्तु पुद्गलद्रव्य की परिणामिक सत्ता अनादि अनंत है। अपितु जो परस्पर मिलना और विछुड़ना भाव है वह सादि सान्त है । अतएव जव जीव और पुद्गल का परस्पर सम्बन्ध है तव ही जीव में सक्रियता होती है, परन्तु जिस समय जीव कर्मों से रहित हो जाता है, तब वह क्रिय हो जाता है । परन्तु पुद्गलद्रव्य सदैव काल सक्रियत्व भाव में रहता है ।
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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