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( २०७ ) २ द्रव्यनियम-अपने मुख में अपनी अंगुली के विना यावन्मात्र पदार्थ खाने में आते हैं, उनकी द्रव्य संशा है, सो इस बात का नित्यप्रति परिमाण कर लेना चाहिए कि-आज मैं इतने द्रव्य आसेवन करूंगा । जैसे कि-मूंग की दाल-एक द्रव्य, गेहूं की रोटी-दोद्रव्य, पानी-तीन द्रव्य । इसी प्रकार अनेक द्रव्यों की कल्पना कर लेनी चाहिए । परन्तु इस विषय में दो प्रकार से परिमाण किया जाता है जैसे कि-एक तो सामान्यतया और दूसरे विशेषतया । यदि सामान्यतया परिमाण करना हो तो मूंग की दाल, उड़द की दाल, हरहर की दाल इत्यादि सर्व प्रकार की दालें एक द्रव्य में गिनी जायेंगी और विशेषतया परिमाण करना हो तो दालों के जितने नाम हैं तावन्मात्र ही द्रव्य गिने जायेगे। इसी प्रकार प्रत्येक द्रव्यों के विषय जानना । सो द्रव्यपरिमाण बांधते समय सामान्य विशेष का अवश्य ध्यान रखना चाहिए । इस नियम से तृष्णा का निरोध और संतोषवृत्ति की प्राप्ति होती है। साथ ही "परिणामान्तरापन्न द्रव्यमुच्यते। इस वाक्य का अर्थ जान लेना चाहिए अर्थात् द्रव्य उसको कहते हैं जो अपने परिणाम से अन्य परिणाम में परिणत होगया हो।
३ विगयनियम-जो पदार्थ विकृत रूप से उत्पन्न हुआ है वह विगय कहलाता है। वह विगय नव हैं जैसे मद्य १ मांस २ मदिरा ३ नवनीत ४ दुग्ध ५ दही ६धृत ७ तेल = गुड़ । जिनमें गृहस्थ के लिये मद्य और मांस का तो सर्वथा त्याग होता ही है, परन्तु शेष विगयों का परिमाण अवश्यमेव होना चाहिए। अतएव गृहस्थ को उचित है कि-शेष विगयों का नित्यंप्रति परिमाण करता रहे।
४ उपानहनियम-जोड़ापगरखा--बूट आदि पदार्थ जो पात्रों के वेष्टन के काम आते हैं उनका परिमाण करना चाहिए । यदि शक्ति हो तो सर्वथा ही धारण न करने का नियम करदे क्योंकि ये सब आडम्बर जीवहिंसा के कारणभूत हैं परन्तु यदि संसार में रहते हुए उक्त क्रियाओं का परित्यागन होसके तो उनका परिमाण अवश्यमेव होना चाहिए।
५ तांबूलपरिमाण-जो पदार्थ मुख शुद्धि के लिये ग्रहण किये जाते हैं । जैसेकि-पान, सुपारी, लवंग, इलायची आदि।उनका परिमाण करना चाहिए।
६ वस्त्रविधिपरिमाण-वस्त्रों के धारण करने की संख्या नियत करनी चाहिए । जैसेकि-श्राज और इतनी संख्या में पहनूंगा । अमुक २ वस्त्र पहरूंगा २ स्वदेशी वा विदेशी वस्त्र तथा कार्पास के इस प्रकार वस्त्रविधि में सर्व जाति के वस्त्रों का परिमाण होना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रहे किजिस वस्त्र में हिंसादिकृत्यों की विशेष संभावना हो वह वन त्याग देना चाहिए। - ७ पुष्पविधि परिमाण-अपने भोगने के लिये पुष्पों का परिमाण करना