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( १५७ ) रूपी ग्राम कदापि सुरक्षित नहीं रह सकता । प्रत्युत व्याधियुक्त होकर शीघ्र ही परलोक की यात्रा के लिये कटिवद्ध हो जाता है । सारांश यह है कि दोनों प्रकार के ग्रामों की व्यवस्था को ठीक करना उसी का नाम ग्रामधर्म है। ग्राम जिस प्रकार उन्नति के शिखर पर आरूढ़ होजाए और ग्रामवासी जन आनंद पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करसकें इस प्रकार के नियम जो स्थविरों ने वांधे हों उन्ही का नाम प्रामधर्म है।।
२ नगरधर्म-प्रति नगर का भिन्न २ प्रकार से आचार व्यवहार होता है, परन्तु जिन नियमों से नगरवासीजन शांति और आनन्द पूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें,ऐसे नियम जोस्थविरों द्वारा बांधे हों, उन्ही का नामनगरधर्म है। क्योंकि स्थविरों को इस वात का भली भांति ज्ञान होता है कि अब नगर इस व्यवस्था पर आरहा है, इस लिये अव देश या कालानुसार इन नियमों की योजना की आवश्यकता है। जैसे कि-जब नगर व्यवहार या व्यापार की उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है और जिसके कारण व्यापारी वर्ग धर्म के लाभ के लिये सांसारिक उन्नति के शिखर पर पहुंचते हैं, उस समय लोग विवाह आदि शुभ क्रियाओं में मनमाने धन का व्यय करने लग जाते हैं। उन्हें उस समय किसी प्रकार की भी पीड़ा नहीं होती, परन्तु जव व्यापार की क्रियाएं निर्वल पड़ जाएं और फिर भी उसी प्रकार विवाहादि क्रियानो में धन व्यय किया जाए तो उन लोगों को अवश्यमेव कष्टों का मुंह देखना पड़े। परन्तु उस समय तो नगर के स्थविर उन नियमों को बांध लेते हैं जो द्रव्य क्षेत्र काल और भाव के अनुसार होते हैं, जिनके द्वारा नगरवासी जन धन के न्यून होजाने पर भी उक्त क्रियाओं के करते समय दुःखों का अनुभव नहीं करते । इसी का नाम नगर धर्म है। नगरधर्म उसको भी कहते हैं जिसमें कर न लगा हो। इस शब्द से निश्चित होता है कि-पूर्व काल में जब राजे लोगं नगर की स्थापना करते होंगे तव उस की वृद्धि के लिए कुछ समय तक कर नहीं लगाते होगे। यह नियम आजकल भी कतिपय मंडियों में देखाजाता है। सारांश यह निकला कि प्रति नगर का खान, पान, वेष, भाषा, कला, कौशल इत्यादि प्रायः भिन्न २ होती है । अतः जो नगर स्थविरों द्वारा सुरक्षित होरहा हो उसी को नगरधर्म कहते है।
३ राष्ट्रधर्म-राष्ट्र शब्द देश का वाची है । जिस प्रकार देश की विगड़ी हुई व्यवस्था ठीक होसके उसी का नाम देशधर्म है । यद्यपि देश शब्द के साथ ही राज्य धर्म की सत्ता भी सिद्ध होती है, तथापि राज्य धर्म को सूत्र-कर्ता ने पृथक् नहीं माना है, क्योंकि-राजा का सम्बन्ध देश के ही साथ है राजा ही देश का संरक्षक होता है, इसलिये राजा वा राज्यधिकारी लोगों को सूत्र-कर्ता .