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यदि उसकी अवस्था ठीक परिपक्क होगई है तो उस का जीर्णपन व्यर्थ है ||५|| क्योंकि - जिसके अन्तःकरण में सत्य, धर्म, अहिंसा, संयम और दम होते हैं, वही आत्मा अन्तरंग मल से रहित होकर स्थविर कहा जाता है ॥ ६ ॥ अतएव इस प्रकार के स्थविरों से बांधे हुए नियम जनता के हितकारी होते हैं। इसीलिये सूत्रकर्ता ने पाखंडधर्म का प्रवर्तक स्थावर नहीं माना है क्योंकि वह पाखंडधर्म पाखंडियों से ही प्रचलित हो जाता है । स्थविरों से नहीं ।
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हम अपने मूल विषय पर आते हैं धर्म शब्द का अर्थ ही यह है "समाचार या सुन्दर व्यवस्था" श्रर्थात्-जिन नियमों द्वारा आचरण ठीक किया जाय और व्यवस्था ठीक बांधी जाए उसी को धर्म कहते हैं । किसी के मत में तो धृञ् धारणे - धातु से अच् प्रत्यय लगा कर धर्म शब्द की सिद्धि होती है, किन्तु अगर धृञ् धातु के श्राश्रित होकर धर्म शब्द का यह अर्थ करने लगे हैं किजो धारण किया जाय वही धर्म होता है तो उनका यह अर्थ युक्तियुक्त नहीं है । थोड़ी देर के लिये माने भी तो चोर ने जो चौर्य कर्म धारण किया है वह भी क्या उसके मत के अनुसार धर्म ही हुआ ? वैश्या ने जो व्यभिचार से श्राजी - विका धारण की है, क्या उसका वही धर्म होगया है ? मांस भक्षकों ने जो मांस भक्षण का अभ्यास किया है क्या उनका वही धर्म है ? और जो अन्याय करने पर ही कटिबद्ध होरहे हैं तो क्या उनका वही धर्म है ? नही, इत्यादि कुकृत्यो को यदि धर्म माना जाय तो राज्य सत्तादिक की क्या आवश्यकता है ? राज्य सत्ता का तो मुख्य प्रयोजन यही होता है कि अधर्म का नाश और धर्म की वृद्धि हो । जब कोई अधर्म रहा ही नहीं तो फिर राज्य सत्तादिक की योजना किस लिये ? इससे सिद्ध हुआ कि बिगड़ी हुई व्यवस्था को ठीक करना तथा सदाचार की वृद्धि करना ही धर्म शब्द का अर्थ है । इसीलिये श्रमण भगवान् श्री महावीर स्वामी ने दश प्रकार का धर्म प्रतिपादन किया है । जैसे कि
१ ग्रामधर्म-ग्राम की व्यवस्था ठीक करना, जिस से ग्राम वासियों को किसी प्रकार से दुःखों का अनुभव न करना पड़े । क्योंकि- - जब ग्राम दुर्व्यवस्था में होता है तो ग्राम के वासी ईर्ष्या या अन्याय से नाना प्रकार के दुःखों काही अनुभव करते रहते हैं । जैसे महानद (दरयाव ) के समीप का अरक्षित ग्राम महानद में बाढ़ आ जाने से दुखों के समुद्र में निमग्न होजाता है ठीक उसी प्रकार दुर्व्यवस्थित ग्राम के वासी जन भी सदैव कष्टों का मुंह देखा करते हैं । वस्तुतः —— ग्रामधर्म उसी का नाम है, जो स्थविरों से बांधे हुए नियमों से सुरक्षित है । इसी प्रकार ग्राम नाम इंद्रियों के समूह का भी है, सो उन का धर्म है विषयाभिलाष, यदि अनियत रूप से विषय सेवन किये जायं तो इंद्रिय