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केवलज्ञान का प्रकाश न कर सके किन्तु निर्वाणपद की प्राप्ति कर ली जैसेकिश्री गजसुकुमार आदि महर्पि हुए हैं । इस प्रकार के महर्षियों के जीवन चरित इस सूत्र में दिये गए हैं। इस सूत्र का केवल एक ही श्रृतस्कन्ध है और पाठ चर्ग है । २३०४२०० इस के पदों की संख्या है और निरयावली सूत्र इसका उपांग है। इस उपांग में महाराजा कूणिक और चेटक राजा के संग्राम का वर्णन है। साथ ही नवमल्ली जाति के नौ राजे और नवलच्छी जाति के महाराजे सर्व १८ गणराजों का भी वर्णन किया गया है ।
आजकल जो लोग नूतन से नूतन सांग्रामिक आविष्कारों को देखकर आश्चर्य प्रकट करते है । उक्त सूत्र का अध्ययन करने से उनको यह भली प्रकार से विदित हो जायगा कि-पहिले समय में भी यह भारतवर्ष प्रत्येक शिल्पकला में बढ़ा चढ़ा हुआ था क्योंकि-उक्त सूत्र में एक रथमूशल संग्राम का वर्णन करते हुए कथन किया गया है कि महाराजा कृणिक ने एक यंत्र ऐसा तय्यार किया था कि-जो रथाकार था परन्तु उसमें अश्वादि कुछ भी नहीं लगे हुए थे। जव वह शत्रु की सेना में छोड़ दिया गया वह अपने आप लाखों पुरुषों का संहार करता हुआ चारों ओर परिभ्रमण करता था। इसी प्रकारवज्रशिला कंटक संग्राम का भी वर्णन किया गया है । कई लोग कहते हैं कि भारतर्वप में पहिले लिपिनहीं थी। इस सूत्र के अध्ययन करने से यह बात भी निर्मूल सिद्ध होजाती है।
अनुचरोपपातिकदशाङ्गसूत्र-इस सूत्र में जो व्यक्ति तप संयम के वल से विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध नामक पांच अनुत्तरविमानों में उत्पन्न हुए हैं उनके नगर, राज्य, माता पिता, वनखंडादि का वर्णन किया गया है। तथा जिस प्रकार उन आत्माओं ने परम समाधिरूप तपकर्म धारण किया उस तपकर्म का भी दिग्दर्शन कराया गया है । जैसे काकंदी नगरी के रहने वाले धन्नाकुमार जी के तप का विवरण है जो एक भव धारण कर मोक्ष गमन करेंगे। उस जन्म के भव का भी वर्णन किया गया है जैसेकि-आर्यकुलादि मे जन्म धारण, फिर महामुनियों की संगति द्वारा धर्मप्राप्ति, दीक्षाग्रहण और श्रुताध्ययन तथा तपोकर्म से केवलज्ञान, अंत मे निर्वाणपद की प्राप्ति का वर्णन किया गया है । इस सत्र का एक श्रुतस्कन्ध-और तीन वर्ग हैं। ४६ लक्ष आठ हजार इसके पदों की संख्या है। इसका उपांग कल्पवत्तसिका सूत्र है ।
१०-प्रश्नव्याकरण सूत्र-इस सूत्र में पृष्ट और अपृष्ट सैकड़ों प्रश्नों का तथा अनेक प्रकार की चमत्कारिक विद्याओं का दिग्दर्शन था जैसेकि-मन प्रश्नविद्या तथा देवताओं के साथ वाद करने की विधि, अंगुष्ट प्रश्नादि विद्याओं का भी वर्णन था परन्तु अाजकल उक्त सूत्र मे केवल पांच आश्रव, जैसे-हिंसा,