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________________ ( १०२ ) की विधि विधान को स्वशिष्य को सिखलाकर ऋणमुक्त हो इसीका नाम आचार विनय है ॥ प्राचार विनयवान् को किया हुआ श्रुतदान सफल हो सकता है अतः अब सूत्रकार श्रुतविनय विषय कहते हैं: सेकिंतं सुयविणय ? सुयविणय चउबिहे पण्णत्ता तंजहा-सुत्तं वाएड १ अत्थं वाएइ २ हियं वाएइ ३ निसेस्सं वाएइ ४ सेतसुयविणए॥२॥ अर्थ-(प्रश्न) हे भगवन् ! श्रुतविनय किसे कहते हैं ? (गुरु) हे शिष्य! श्रुतविनय चार प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसे कि-सूत्रवाचना १ अर्थ वाचना २ हितवाचना ३ और निशेष वाचना ४ । इसी का नाम श्रुतविनय है। साराश-शिष्य ने प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! श्रुतविनय किसे कहते हैं ? इसके उत्तर मे गुरु ने प्रतिपादन किया कि-हे शिष्य ' सूत्र को विधिपूर्वक पठन कराना इसी का नाम सूत्रविनय है । इसके चार भेद हैं जैसे कि प्रथमसंहिता और पदच्छदपूर्वक अस्खलितरूप से अंगशास्त्र वा उपांगादि शास्त्रों का अध्ययन कराना चाहिए क्योंकि-सूत्र शब्द की यही व्युत्पत्ति कथन की गई है कि-"सूयन्ते सूच्यन्ते वा अर्था अनेनेति सूत्रं' अर्थात् जिसके द्वारा अर्थों की सूचना की जावे तथा अर्थ एकत्र किए जावें उसी का नाम सूत्र है । तथा जिस प्रकार सूई वस्न को डोरे से सी देती है उसी प्रकार जो अर्थों को सी रहा है उसी का नाम सूत्र है। इस प्रकार के सूत्रों को श्राप अध्ययन करे और अन्य शिष्यों को अध्ययन करावे । उसीका नाम सूत्रवाचना है। यद्यपि 'सूत्र' शब्द अल्प अक्षर और बहुत अर्थ वाले वाक्य के लिय ही रुढि से प्रवृत्त हो रहा है परन्तु जहां पर अभेदोपचारनय के मत से समग्र ग्रंथ का नाम भी सूत्र माना गया है जैसेकि-श्राचारांग सूत्र सूयगडांग सूत्र, इत्यादि । सो जव अस्खलित रूप से सूत्र वाचना ठीक हो जाय तव फिर द्वितीय अर्थ वाचना शिप्य को देनी चाहिए जैसेकि-जव सूत्र वाचना समाप्त हो चुके तो फिर नियुक्ति भाष्यादियुक्त अर्थ वाचना शिष्य को करानी चाहिए क्योंकि-जव संहिता और पदच्छेद सूत्र का हो चुका तो फिर पदार्थ होना चाहिए क्योंकि-नूतन विद्यार्थी को शब्दार्थ वृत्ति ही परमोपयोगी होती है उसके द्वारा वह सूत्र के शब्दार्थ को भली प्रकार जान सकता है जब उसकी गति पदार्थ में ठीक हो जाए तव उसको फिर पदविग्रह करके दिखलाने चाहिए अर्थात् जो शब्द समासान्त हों उन्हें पद विग्रह करके दिखला देना चाहिए । इस प्रकार करने से छात्र के अन्तःकरण में सूत्रों का अर्थ अंकित हो जाता है फिर वह किसी प्रकार से भी विस्मृत नही होने पाता अतएव इसका नाम अर्थवाचना है। तृतीय वाचना का नाम हितवाचना है इसका मन्तव्य यह है कि-जिस प्रकार अपनी आत्मा
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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