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________________ ( ७६ ) भा०--संग्रह नय सामान्य धर्म को ही स्वीकार करता है, क्योंकिसंग्रह नय का मन्तव्य है कि-सामान्य धर्म युक्त ही द्रव्य का सत् लक्षण है। कारण कि-सामन्य धर्म से व्यतिरिक्त कोई विशेष रूप धर्म पृथक् देखा नहीं जाता। यदि कोई यह कह देवे कि सामान्य धर्म से व्यतिरिक्त कोई विशप रूप धर्म और भी है, तो यह कथन उस का आकाश के पुप्प के सदृश है क्योंकि-जिस प्रकार आकाश के पुप्प वास्तव में असत्य होते हैं, ठीक उसी प्रकार सामान्य धर्म से व्यतिरिक्त विशेष धर्म को भी स्वीकार करना असत्य रूप ही है। अव संग्रहनय उक्त कथन को दृष्टान्त द्वारा सिद्ध करता है विना वनस्पति कोऽपि निम्बाम्रादिर्न दृश्यते हस्ताद्यन्त विन्यो हि नाङ्गुल्याद्यास्ततः पृथक् ॥ ७॥ अस्यैवाभिप्रायं दृष्टान्तेन द्रढयन्नाह-वनस्पतिं सामान्याभिधाना या वनस्पतेर्जातिस्तां विना तरुत्वत्यागेन निम्बाम्रादिनिम्वश्च अाम्रश्च निम्बाम्रो तावादी यत्र दृग्यापारे स निम्बाम्रादिः कोऽपि न दृश्यते इङ्मार्गे नावतरति यत्र यत्र वृक्ष हर व्याप्रियते तत्र तत्र वनस्पतित्वमेव दृश्यतेऽतः सामान्यमेव वस्तु एनमेव द्रढयति हि-यस्माद्धस्तादिप्वप्वन्त विन्योऽगुल्य अादिशब्देन हस्ततललेखानखदन्ताक्षिपत्रादीनि यथा ततो हस्ताघङ्गतः पृथङ् न भवंति तथा सामान्यतः पृथग् विशेषो, नास्तीत्यर्थः ॥ ७॥ भावार्थ-सामान्य धर्म से पृथक् कोई भी विशेष धर्म नहीं है, जिस प्रकार वनस्पति से पृथक् कोई भी फल वा वृक्ष दृष्टिगोचर नहीं होता। जव ान वा निम्बादि वृक्ष दृष्टिगोचर होते हैं, तब ही वनस्पति का वोध हो जाता है परंच वनस्पति से पृथक् कोई भी वृक्ष नहीं देखाजाता । जिस प्रकार हस्त में अंगुलियां और नखादि अन्तर्भूत हो जाते हैं, ठीक उसी प्रकार सर्व वृक्षादि वनस्पति के अन्तर्भूत हैं । क्योंकि-वनस्पति एक सामान्य धर्म है, और आम्रादि वृक्ष उसके विशेष धर्म हैं। परन्तु वे वनस्पति से पृथक् नहीं देखे जाते, अतएव सामान्य धर्म ही मानना युक्ति संगत सिद्ध होता है। अव संग्रहनय के प्रति व्यवहार नय कहता है विशेषात्मकमेवार्थ व्यवहारश्च भन्यते विशेषभिन्न सामान्यमसत् खरविषाणवत् ॥६॥ - टीका-व्यवहारश्च व्यवहारनामा नयः विशेषात्मकं पर्यायस्वरूपमेवार्थ पदार्थ मन्यते कक्षीकुरुते कुतो जिनोपदेशे विशेषभिन्नं विशेषात्
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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